उदयपुर: “हम एक समृद्ध सभ्यता हैं, दुनिया इस बात को स्वीकार करती है, दुनिया इस तथ्य को जानती है. हमारी संस्कृत अब पूरे विश्व में पढ़ाई जा रही है. लेकिन मैं आपसे कोई सवाल नहीं पूछूंगा, आपको अपने भीतर ही झांकना होगा.” उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने उदयपुर के वनवासी कल्याण आश्रम विद्यालय प्रांगण में भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में सभा को संबोधित करते हुए यह बात कही. उन्होंने कहा कि क्या आपको वेदों, उपनिषदों, पुराणों को वास्तव में देखने का अवसर मिला है? क्या आपको कभी गीता पढ़ने का अवसर मिला है? जरा सोचिए, पूरी दुनिया हमें सलाम कर रही है. हम शक्ति एवं ज्ञान, बुद्धि का स्रोत हैं. एक ऐसा ज्ञान जो हजारों वर्षों से हमारे पास है. हमारे युवकों और युवतियों को समझना होगा. उपराष्ट्रपति ने कहा कि अहंकार हमारे समाज या सभ्यता का हिस्सा नहीं है. आप प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग केवल इसलिए नहीं कर सकते, क्योंकि आप उसका खर्च वहन कर सकते हैं. आपको प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग एक ट्रस्टी के रूप में अधिकतम करना होगा. हमने पहले ही इस धरती को इतनी बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर दिया है कि हर कोई जलवायु परिवर्तन के बारे में बात कर रहा है. हमने जो एकजुटता दिखाई है, उसे कौन लाया है? लेकिन भारत को पूरी दुनिया को यह दिखाना होगा कि जलवायु परिवर्तन से कैसे निपटा जाए. उपराष्ट्रपति ने कहा कि मैं हमारे धर्मग्रंथों से एक श्लोक उद्धृत करते हुए समाप्त करूंगा. और यह श्लोक कहता है, यश: नागरिको धर्म. नागरिको धर्म- यह नागरिक का कर्तव्य, नागरिक का उत्तरदायित्व के बारे में बताता है, नागरिक को क्या करना चाहिए, राष्टवाद के प्रति समर्पण होना चाहिए, विकास में योग देना चाहिए, भाईचारा को बढ़ाना चाहिए; दूसरा, स्वदेशी यम सदा. स्वदेशी हमारे स्वतंत्रता आंदोलन की रीढ़ की हड्डी थी.
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि स्वदेशी कई तरीकों से सामने आया है, चाहे ‘वोकल फार लोकल‘ हो, ‘एक जिला, एक उत्पाद,’ लेकिन अगर आप इसे आदत बना लेंगे हैं, तो देश के लिए इसके परिणाम नाटकीय होंगे, आप राष्ट्रवाद में योगदान दे रहे होंगे, आप अर्थव्यवस्था में योगदान दे रहे होंगे. उपराष्ट्रपति ने कहा कि समाजे समा भावश्च, सामाजिक समरसता, सद्भाव, ऐसे लोग हैं जिनमें विघटनकारी प्रवृत्तियां हैं, वे अराजकता के नुस्खे हैं, वे हमारे सभ्यतागत मूल्यों से अनभिज्ञ हैं, हमारी सभ्यता दुनिया की एकमात्र ऐसी सभ्यता है जो समावेशी, निष्पक्ष, न्यायसंगत है और किसी के साथ अन्याय नहीं करती है, अन्याय की तो बात ही छोड़ दीजिए. हम इंसान तो क्या, एक ऐसी सभ्यता से संबंध रखते हैं जो जीवित प्राणियों के साथ भी कोई अन्याय नहीं करती और हम पौधों को भी जीवित प्राणी मानते हैं. कुटुंबे प्रकर्तो तथा – कुटुंब का ध्यान देना. कुटुंब पे ध्यान देना चाहिए. मैं कुटुंब को बहुत बाद मानता हूं. माता पिता का आदर करना, दादा दादी का आदर करना, नाना नानी का आदर करना, उनको समय देना, फिर आपको कितना सुख मिलेगा आप अंदाज़ा नहीं लगा सकते. उपराष्ट्रपति ने कहा कि पता लगाना पड़ोस में कौन है, पता लगाना क्लास में मेरे साथ कौन कौन है, यह जीवन भर के साथी रहेंगे, एक बार जब आप यह जुड़ाव पैदा कर लेंगे, तो जीवन में आपकी यात्रा बहुत सहज, सामंजस्यपूर्ण, संपूर्ण और लाभकारी होगी, यह हमारे संस्कृति और पर्यावरण का हिस्सा है, पर्यावरणीय चुनौती अस्तित्वपरक है, मेरे बातों को याद रखिएगा, हमारे पास रहने के लिए कोई दूसरी धरती नहीं है, यही एकमात्र ग्रह है, हमने अब तक इसके साथ खिलवाड़ किया है, आइए मिलकर और एकजुट होकर, हमने जो नुकसान किया है उसकी भरपाई करें, और मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है, हम इस देश में इसके लिए सक्षम हैं, क्योंकि हमें बाकी दुनिया को जागरूक करना है.