नई दिल्ली: “दुनिया, हमारा ग्रह, जलवायु परिवर्तन के कारण अस्तित्व की चुनौती का सामना कर रहा है. हम न जीवित रहेंगे और न गलती करेंगे, इसमें कोई संदेह नहीं कि हमारे पास रहने के लिए कोई दूसरा ग्रह नहीं है.” उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने दिल्ली विश्वविद्यालय के भारती कालेज में ‘विकसित भारत में महिलाओं की भूमिका’ विषय पर छात्रों और संकाय सदस्यों को संबोधित करते हुए कही. उपराष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री के ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान को उचित आह्वान करते हुए बताया कि मैंने इस परिसर में भी शुरुआत की है. आप सब मेरा एक अनुरोध मानिए और संकल्प लीजिए कि आप ऐसा करेंगे. मां के नाम, दादी के नाम, नानी के नाम पेड़ लगाएंगे. यह बहुत बड़े पुण्य का काम होगा. जब आप सब नियमित रूप से ऐसा करेंगे तो नतीजे बहुत अच्छे आएंगे. ‘विकसित भारत में महिलाओं की भूमिका’ विषय को सामयिक, समसामयिक और अत्यंत प्रासंगिक बताते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि हम अपनी लड़कियों और महिलाओं की भागीदारी के बिना सबसे तेजी से विकसित राष्ट्र का दर्जा हासिल नहीं कर सकते. उनमें ऊर्जा है, उनमें प्रतिभा है. हमें उनकी इष्टतम भागीदारी के लिए एक पारिस्थितिकी तंत्र बनाना होगा. यह अन्यथा नहीं हो सकता. लड़कियों और महिलाओं की भागीदारी के बिना भारत को एक विकसित राष्ट्र के रूप में सोचना तर्कसंगत सोच नहीं है. आपकी भागीदारी से विकसित भारत का सपना 2047 से पहले पूरा होगा.

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि आज के दिन महिलाएं ग्रामीण अर्थव्यवस्था, कृषि-अर्थव्यवस्था और अनौपचारिक अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी हैं. लेकिन वे समस्याओं का सामना कर रही हैं, ऐसी समस्याएं जिन्हें वे साझा भी नहीं कर सकती हैं. उपराष्ट्रपति ने नागरिकों से राष्ट्रपति के ‘बस बहुत हुआ’ के आह्वान को दोहराने की अपील की और कहा, ‘राष्ट्रपति ने कहा, बस बहुत हुआ!’ आइए, इसे राष्ट्रीय आह्वान बनाएं. मैं चाहता हूं कि यह आह्वान सभी के लिए हो. चलिए संकल्प लें कि हम एक ऐसा सिस्टम बनाएंगे जिसमें कोई भी लड़की या महिला पीड़ित न हो. आप हमारी सभ्यता को नुकसान पहुंचा रहे हैं, आप अति क्रूरता का प्रदर्शन कर रहे हैं. किसी भी चीज को बीच में न आने दें और मैं चाहता हूं कि देश के हर नागरिक इस समय की सटीक चेतावनी को सुने.’ उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमारी बेटियों और महिलाओं के मन में डर एक राष्ट्रीय चिंता का विषय है. उन्होंने कहा, ‘जहां महिलाएं और लड़कियां सुरक्षित नहीं महसूस करतीं, वह समाज सभ्य नहीं है. वह लोकतंत्र भी धूमिल हो जाता है; यह हमारे विकास के लिए सबसे बड़ी बाधा है.’ लिंग आधारित असमानताओं को समाप्त करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘क्या हम कह सकते हैं कि आज लिंग आधारित असमानता नहीं है? समान योग्यता के बावजूद भिन्न वेतन, बेहतर योग्यता के बावजूद समान अवसर नहीं. यह मानसिकता बदलनी चाहिए. पारिस्थितिकी तंत्र को समान होना चाहिए, असमानताएं समाप्त होनी चाहिए.’