मुंबई: “इतिहास केवल अतीत की घटनाओं का वर्णन भर नहीं है, बल्कि हमारी इतिहास-दृष्टि, हमारे वर्तमान और भविष्य को प्रभावित करती है.” राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने यह बात महाराष्ट्र विधान परिषद के शताब्दी वर्ष समारोह को संबोधित करते हुए कही. उन्होंने कहा कि हमारे संविधान के हस्तलिखित मूल पाठ के 15वें भाग में छत्रपति शिवाजी महाराज का चित्र सुशोभित है. वह चित्र हमारे संविधान निर्माताओं के हृदय में छत्रपति शिवाजी महाराज के प्रति गहरे सम्मान का परिचय देता है. राष्ट्रपति ने कहा कि इस अवसर पर हम सब समाज-निर्माण तथा राष्ट्र-गौरव की उन सभी धाराओं से जुड़ रहे हैं जो छत्रपति शिवाजी महाराज से होती हुई महात्मा जोतिबा फुले, वासुदेव बलवंत फड़के, महर्षि कर्वे, शाहूजी महाराज, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, गोपाल कृष्ण गोखले, विनायक दामोदर सावरकर और बाबासाहब डाक्टर भीमराव आंबेडकर जैसी अनेक महान विभूतियों तक प्रवाहित होती रही हैं. उन्होंने कहा कि बाबासाहब आंबेडकर बांबे विधान परिषद के सदस्य रहे थे. संसदीय प्रणाली को समझने और दिशा देने में उनके जैसा व्यक्तित्व इतिहास में दुर्लभ है. उनकी सदस्यता और मार्गदर्शन से लाभान्वित होना इस परिषद का सौभाग्य रहा है.
मराठी कवि श्रीपाद कृष्ण कोल्हटकर की इन पंक्तियों ‘बहुत असोत सुंदर, सम्पन्न की महा, प्रिय अमुचा एक, महाराष्ट्र देश हा‘ में समाहित भावनाओं का उल्लेख करते हुए राष्ट्रपति ने इस सदन की गरिमा के बारे में बहुत कुछ कहा. उन्होंने कहा कि वस्तुतः तत्कालीन बांबे प्रेसिडेंसी में विधान परिषद की परंपरा वर्ष 1862 से ही शुरू हो गई थी. ‘लोकहित-वादी‘ गोपाल हरि देशमुख, जस्टिस महादेव गोविंद रानाडे, सर फिरोजशाह मेहता, लोकमान्य तिलक और गोपाल कृष्ण गोखले जैसे अनेक महापुरुषों ने समय-समय पर बांबे विधान परिषद की शोभा बढ़ाई थी. इस विधान परिषद ने स्वस्थ वाद-विवाद और संवाद की परंपरा को स्थापित करके लोकतांत्रिक मूल्यों को शक्ति दी है. साथ ही, परिषद के सदस्यों ने जन-कल्याण के क्षेत्र में अद्भुत योगदान दिया है. इस परिषद के पूर्व सभापति विस पागे ने रोजगार गारंटी योजना की परिकल्पना की थी. उस योजना जैसी व्यवस्था ही बाद में ‘मनरेगा‘ के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर अपनाई गई. राष्ट्रपति ने कहा कि इस समारोह में जिस पुस्तक का विमोचन किया गया वह उच्च सदन के महत्त्व के साथ-साथ यहां की विधान परिषद के इतिहास पर भी प्रकाश डालती है. मुझे बताया गया है कि इस पुस्तक में एक अध्याय इस विधान परिषद की पहली महिला उप-सभापति जेठी तुलसीदास सिपाही-मलानी को भी समर्पित है.