नई दिल्ली: हिंदी अकादमी और हिंदू महाविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में ‘प्रतिबंधित हिंदी साहित्य’ पर एक संगोष्ठी आयोजित हुई. चार सत्रों में विभक्त संगोष्ठी का उद्घाटन हिंदी अकादमी के उपाध्यक्ष सुरेंद्र शर्मा ने किया. सान्निध्य प्रो अंजू श्रीवास्तव और संचालन राजमणि का था. अपने संबोधन में शर्मा द्वारा ने कहा कि आजादी से पहले जो प्रतिबंधित साहित्य रचा गया उसे अंग्रेजों ने अपने राज को बचाने के लिए प्रतिबंधित किया. परन्तु वर्तमान में जो साहित्य रचा जा रहा है, जिसके प्रतिबंध की आवश्यकता हो उसको कौन प्रतिबंधित करे. अकादमी के सचिव संजय कुमार गर्ग ने कहा, प्रतिबंधित साहित्य का अर्थ यह नहीं कि किसी साहित्य को प्रतिबंधित किया जाये. इसका अर्थ यह है कि किसी विशेष समय, काल में उस साहित्य को जनमानस की पहुंच से दूर रखा जाये. स्वागत वक्तव्य में प्राचार्य प्रो अंजू श्रीवास्तव ने कहा कि हिंदू कालेज राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ा रहा है. प्रथम सत्र में डा प्रदीप जैन, डा नरेन्द्र शुक्ल, डा राकेश पाण्डेय, डा चन्द्रपाल तथा द्वितीय सत्र में प्रो संतोष भदौरिया की अध्यक्षता में प्रो चमन लाल, डा राजवंती मान और भैरव लाल दास द्वारा अपने वक्तव्यों में कहा कि अंग्रेजी राज के दौरान दो तरह की पुस्तकों पर प्रतिबंध लगा था जिनमें से कुछ वैचारिक थी और कुछ गांधी, भगत सिंह के आदर्शों पर लिखी गयी रचनाएं.
वक्ताओं ने कहा कि उस समय के साहित्यकारों ने कविता, नज्म, गजल, लेखों, नाटकों आदि विधाओं में अपने देशप्रेम को व्यक्त किया. इनमें अधिकांश रचनाएं प्रतिबंधित हुईं, जिस कारण यह पढ़ी कम गईं लेकिन गाई ज्यादा गयीं. विरोधी रचनाओं के सृजन के खतरे को जानते हुए भी लेखकों और प्रकाशकों ने अपने नाम और पते के साथ कदम बढ़ाए और उसके बाद गिरफ्तारी, पुलिस अत्याचार, जुर्माने, जब्ती आदि हुए. यह सब हुकूमत के लिए भयभीत करने वाला और असहनीय था. इसीलिए कड़े प्रेस कानून के तहत उन्हें जब्त कर लिया जाता था. जनमानस द्वारा भी अपने देशप्रेम को आल्हा, कजरी, गीतों, शेरों और लोकगाथाओं आदि के माध्यम से प्रदर्शित किया. लेकिन उस समय रचा गया ये सारा लेखन प्रतिबंधित था. इसीलिए आज के संदर्भ में हमें अपने अतीत एवं अपने वर्तमान की पहचान करवाना है. संगोष्ठी के समापन पर अकादमी के उपसचिव ऋषि कुमार शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापित किया. इस अवसर पर हिंदी विभाग के प्रो रामेश्वर राय, प्रो रचना सिंह, डा विमलेंदु तीर्थंकर, डा पल्लव और डा नीलम सिंह सहित कई महाविद्यालयों के प्रोफेसर, साहित्यकार, पत्रकार, इतिहासकार और अन्य गणमान्य लोग उपस्थित थे.