नई दिल्ली: क्राइम फिक्शन एवं थ्रिलर उपन्यासों के प्रमुख लेखकों में से एक सुरेन्द्र मोहन पाठक की आत्मकथा का दूसरा खंड राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित होने जा रहा है. हिंदी साहित्य जगत में गंभीर साहित्य और लोकप्रिय साहित्य भले ही दो किनारों की तरह नज़र आते हों, लेकिन यह सच है कि पाठकों ने हमेशा दोनों को पसंद किया है. समूह के संपादकीय निदेशक सत्यानन्द निरुपम के मुताबिक 'हम नहीं चंगे बुरा नहीं कोय' नामक यह किताब इस साल अप्रैल के दूसरे हफ्ते में बाज़ार में उपलब्ध हो जाएगी. यह पहली बार होगा जब पॉकेट बुक्स का कोई लेखक मुख्यधारा के साहित्यिक प्रकाशन से जुड़ रहा है. इस बारे में लेखक सुरेन्द्र मोहन पाठक का कहना था कि मेरे जैसे कारोबारी लेखक के लिए यह गर्व का विषय है कि अपनी आत्मकथा के माध्यम से मैं राजकमल से जुड़ रहा हूँ. राजकमल का सत्तरवां और मेरे भी लिखने का साठवां साल अब आ गया है. यह अच्छा संयोग है.
यह जानना प्रेरक और दिलचस्प दोनों होगा कि जीवन की कई विषम परिस्थितियों के बीच रहकर भी बीते छह दशकों में सुरेन्द्र मोहन पाठक ने 300 से ज्यादा उपन्यास कैसे लिखे और कामयाबी के शिखर पर कैसे बने रहे. याद रहे कि जनवरी 2018 में जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में उनकी आत्मकथा का पहला भाग ‘न कोई बैरी न कोई बेगाना’ का लोकार्पण हुआ था. वह भाग वेस्टलैंड बुक्स से छपा था. पाठक की पहली कहानी ‘57 साल पुराना आदमी’ मनोहर कहानियाँ पत्रिका में प्रकाशित हुई थी. तब से अब तक के उनके लेखन के सफर को हिंदी पल्प फिक्शन के एक लंबे इतिहास के सफर के रूप में देखा जा सकता है. राजकमल प्रकाशन से सुरेन्द्र मोहन पाठक की आत्मकथा के दूसरे खंड का प्रकाशित होना हिंदी की बड़ी परिघटना क्यों है, इस बारे में समूह के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी का कहना है, “पाठक जी की आत्मकथा को प्रकाशित करना उनके लाखों पाठकों का सम्मान है. यह दो पाठक-वर्गों के जुड़ाव की परिघटना है, इसलिए यह हिंदी प्रकाशन दुनिया की बड़ी परिघटना साबित हो सकती है.”