नई दिल्लीः साहित्य अकादमी द्वारा आभासी मंच पर प्रख्यात कथाकार मन्नू भंडारी की स्मृति में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया. श्रद्धांजलि सभा के प्रारंभ में साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष माधव कौशिक एवं सचिव के. श्रीनिवास राव ने मन्नू भंडारी के चित्र पर पुष्प अर्पित कर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित कर अपनी संवेदना प्रकट की. माधव कौशिक ने उन्हें पहली पीढ़ी की बहुमुखी रचनाकार के रूप में याद करते हुए कहा कि विचार और भाषा का जो संतुलन उनकी कृतियों में और उनके व्यवहार में दिखता है वह अतुलनीय है. इतने बड़े जीनियस का इतना संतुलित होना आश्चर्यचकित करता है. उनके जाने से एक बड़ा शून्य पैदा हुआ है जिसे भरना आसान नहीं होगा.साहित्य अकादमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने अपने शोक वक्तव्य में कहा कि मन्नू जी हिंदी साहित्य की नई कहानी आंदोलन की प्रमुख स्तंभ थीं. उनकी रचनाओं में हम स्वतंत्रता के बाद के भारतीय समाज में स्त्री पुरुष के बदलते संबंध और बदलते शहरी भारत में टूटते बिखरते दांपत्य जीवन की त्रासदी को महसूस कर सकते हैं. अकादमी द्वारा आयोजित इस श्रद्धांजलि सभा में संचार पटल पर जो साहित्यकार मौजूद थे, उनमें ममता कालिया, अखिलेश, सुधा अरोड़ा, मधु कांकरिया, देवेंद्र चौबे, अब्दुल बिस्मिल्लाह, विजय बहादुर सिंह आदि महत्त्वपूर्ण थे. इन सबने उन्हें अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की. अंत में रचना यादव ने सभी के प्रति अपना आभार प्रकट किया

ममता कालिया ने उन्हें याद करते हुए कहा कि वे शरीर से तो जरूर गई हैं लेकिन अपनी रचनाओं के रूप में चेतना की एक बड़ी थाती छोड़ गई हैं. उन्होंने भारतीय समाज को जिस बेबाकी से प्रस्तुत किया वह उल्लेखनीय है. नई कहानी का चौथा स्तंभ होते हुए भी उन्होंने कभी यह दंभ नहीं भरा कि मुझे इसमें शामिल ही किया जाए. वह कहानी की राजनीति से नहीं बल्कि कहानी की नीति से जुड़ी हुई थीं. उनके छोटे-छोटे पात्र इतने यादगार हैं कि वे हमारे लिए बहुत बड़े हो जाते हैं. अखिलेश ने उन्हें याद करते हुए कहा कि वह कहानी के स्वर्णिम युग की स्मृतियां अपने साथ ले गई हैं. उनकी रचनाओं में आई सभी स्त्रियां आत्मनिर्भर हैं और प्रतिभाशाली भी. कई रचनाकारों  के पास एक भी कालजयी रचना नहीं होतीं लेकिन उनके पास दो उपन्यासों  के अतिरिक्त कई कहानियां भी कालजयी हैं. सुधा अरोड़ा ने उनके साथ अपने मिलने और बातचीत की स्मृतियों को साझा करते हुए कहा कि उनका लेखन इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि इसमें कोई बनावट नहीं है, वह बिल्कुल उनकी तरह सहज और सरल है और इसलिए  पाठकों में लोकप्रिय भी है. मधु कांकरिया ने भी अपने व्यक्तिगत अनुभव साझा करते हुए उनकी उदारता का जिक्र किया और अजमेर के संस्मरण भी साझा किए. देवेंद्र चौबे ने कहा कि मन्नू जी एक अलग तरह की लेखिका थीं और उन्होंने भारतीय समाज को बहुत बारीकी से प्रस्तुत किया है. उन्होंने यह भी कहा कि उनके लेखन से स्त्री संसार को बल मिला. अब्दुल बिस्मिल्लाह ने उनको याद करते हुए कहा कि उनका व्यक्तित्व इतना विराट था कि उनकी पहचान राजेंद्र यादव से नहीं बल्कि स्वयं से थी. उनके जाने से एक बड़े आंदोलन का सारा परिदृश्य जैसे समाप्त हो गया है. उन्होंने यह भी कहा कि उनके लेखन का विश्लेषण बहुत गंभीरता के साथ किए जाने की जरूरत है. उनकी कहानियां केवल स्त्री पुरुष संबंधों की नहीं बल्कि उससे भी आगे की कहानियां हैं. उन्होंने उनकी कहानी 'सज़ा' का जिक्र करते हुए कहा कि यह भारतीय न्याय प्रणाली पर सवाल उठाती है. विजय बहादुर सिंह ने अपनी श्रद्धांजलि व्यक्त करते हुए कहा कि उनके लिखने और सोचने का तरीका अपने समकालीनों से बिल्कुल अलग था और यही उनको अन्य रचनाकारों से अलग भी करता है.