आरा: स्थानीय ग्रांड होटल के सभागार में सुपरिचित लेखिका मीरा श्रीवास्तव की आलोचना पुस्तक 'साठोत्तरी कहानियों में महिला कहानीकारों की भूमिका' का लोकार्पण हुआ । इस अवसर पर बनारस, भागलपुर ,पटना , बक्सर तथा आरा के अनेक रचनाकारों की उपस्थिति उल्लेखनीय रही। इस दौरान प्रो. सुरेश श्रीवास्तव तथा अन्य स्थानीय रचनाकारों द्वारा अतिथियों को शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया ।
मुख्य अतिथि प्रो. चंद्रकला त्रिपाठी ने कहा " हिंदी आलोचना पर पितृ सत्तात्मक प्रभाव के कारण महिला कहानीकारों की रचनात्मक भूमिका ,सक्रियता और अवदान की चर्चा गौण हो कर रह गई । जबकि महिला रचनाकारों की गतिशीलता उल्लेखनीय है ।"
कार्यक्रम के आरम्भ में युवा रचनाकार अविनाश रंजन ने संक्षिप्त आलेख पाठ किया। अध्यक्षता करते हुए बनारस से आये प्रो. वशिष्ठ नारायण त्रिपाठी ने कहा " आज स्त्री और पुरुष का अनुभव संसार बहुत अलग-अलग नहीं रहा । दोनों ने अपने व्यक्तिगत व परिवेश के जटिल अनुभूतियों को काफी गंभीरता से रचनात्मक स्वरूप दिया है। मीरा श्रीवास्तव ने साठोत्तरी महिला कहानीकारों के बहाने एक जरूरी विमर्श को उठाया है ।"
वरिष्ठ आलोचक रामनिहाल गुंजन ने लेखिका को बधाई देते हुए कहा " साठोत्तरी महिला कहानीकारों पर बात करते हुए यह जरूर कहा जा सकता है कि हिंदी कहानी की चर्चा बगैर उनके अवदानों को ध्यान में रखे नहीं की जा सकती ।" उन्होंने यह भी जोड़ा "किसी भी रचनाकार की रचना पर चर्चा करते हुए उसके दृष्टिकोण को ध्यान में रखना भी जरूरी होता है । रचना की प्रासंगिकता तभी ठीक से रेखांकित हो सकती है ।"
इस क्रम में अपनी बात रखते हुए वरिष्ठ कहानीकार नीरज सिंह ने कहा " मीरा श्रीवास्तव ने 1960 से 1975 ई. तक की महिला हिंदी कहानीकारों की चर्चा की है। इसके सहारे हिंदी कहानी की तमाम प्रवृतियों को देखा -समझा जा सकता है। महिला लेखन की संवेदनाओं व अनुभूतियों से हिंदी कथा संसार विस्तृत हुआ है।"
गज़लकार कुमार नयन ने कहा " महिला रचनाकारों को उनके अवदान के लिए अलग से रेखांकित करने की कोई जरूरत नहीं । वस्तुत: महिला अथवा पुरूष के जीवन की चुनौतियाँ अब बहुत अलग-अलग नहीं रहीं । अब सबको अपने-अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़नी है।"
कहानीकार अवधेश प्रीत ने मीरा श्रीवास्तव को बधाई देते हुए कहा " वस्तुत: मीरा जी ने साठोत्तरी महिला हिंदी कहानीकारों के बहाने महिला कहानीकारों का दस्तावेजीकरण किया है। इन कारणों से यह एक महत्वपूर्ण शोध कार्य है।"
इस अवसर पर आलोचक रवींद्रनाथ राय राय , प्रो. पशुपतिनाथ सिंह, कवि जितेन्द्र कुमार, जगदीश नलिन , सुधीर सुमन , सुमन कुमार सिंह, आशुतोष कुमार पाण्डेय, जनार्दन मिश्र , जगतनंदन सहाय , अरूण कुमार सिंह, वीर नारायण सिंह , सुबोध मिश्र, ममता मिश्रा, भाष्कर नंदन मिश्र, राजेश कुमार, पूनम कुमारी , किरण कुमारी आदि उपस्थित थे।
कार्यक्रम का संचालन 'देशज' पत्रिका के संपादक कवि अरुण शीतांश ने तथा धन्यवाद ज्ञापन कहानीकार राकेश कुमार सिंह ने किया ।