लखनऊ: गोमती पुस्तक महोत्सव पुस्तकों के साथ साहित्य और कला का उत्सव बन कर उभरा है. विद्यार्थियों के साथ ही हर आयु वर्ग के छात्र इस महोत्सव में उत्साह के साथ पहुंच रहे हैं. महोत्सव में ‘शब्द संसार‘ मंच पर दृष्टिबाधितों के लिए विशेष सत्र ‘स्पर्श का अहसास: एक नया अनुभव‘ का आयोजन किया गया. इस सत्र में आईआईटी रुड़की की सहायक प्रोफेसर स्मृति सारस्वत ने समग्रता को परिभाषित करते हुए बताया कि समग्रता हमें समान तरीके से जीने और समानता से रहना सिखाती है. स्मृति ने बच्चों को कोलाज के बारे में बताया. उन्होंने डा शकुंतला मिश्रा नेशनल रिहैबिलिटेशन यूनिवर्सिटी से दृष्टिबाधित विद्यार्थियों को क्ले, फूल, सैंड पेपर और प्लास्टिक आदि के खिलौने दिए और कहा कि वो उसे उसके ध्वनि, ढांचा और गंध से पहचान कर उनकी अभिव्यक्ति कर सकते हैं और उसके माध्यम से कोई कहानी बुन सकते हैं. उन्होंने कुछ बच्चों को बुलाया और उनकी मदद से दृष्टिबाधित लोगों ने बड़ी ही रोचक आकृतियां बनाई. इन आकृतियों में कमल का फूल, स्वास्तिक, पेड़ आदि बनवाए गए थे. सभी ने उसके साथ कुछ न कुछ संदेश भी दिया, जिसमें ‘हमें पौधे लगाने चाहिए‘, ‘पेड़ों की रक्षा करनी चाहिए‘ और ‘टीम वर्क करना चाहिए‘ प्रमुख थे. इस मंच पर दूसरा सत्र अनिता भटनागर का रहा, जिन्होंने सत्र का शुभारंभ अपनी स्वरचित पुस्तक ‘गरम पहाड़‘ को दृष्टिबाधित व्यक्तियों को भेंट करके किया. सर्वप्रथम उन्होंने बच्चों को नमस्ते करने का तरीका और फायदा बताया. इसके साथ ही उन्होंने ‘मकाऊ का जन्मदिन‘ नाम की कहानी बच्चों को सुनाई और उससे संबंधित प्रश्न भी पूछे. बच्चों ने कहानियों के इस सत्र को बड़े ही ध्यानपूर्वक सुना और इसमें दिलचस्पी दिखाई. इस सत्र का समापन प्रश्नों के सही उत्तर देने वाले बच्चों को पुस्तकें भेंट करके हुआ.
एक सत्र और में अंबालिका भट ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी जानकारियां बच्चों को दीं. उन्होंने क्रांति क्या होती है के बारे में बच्चों को बताया. इसके साथ ही उन्होंने 1499 में पुर्तगालियों के आने से लेकर कई ऐसे क्रांतिकारियों के बारे में भी बताया, जिनका इतिहास में बहुत कम जिक्र है. इस सत्र में रानी अबक्का, रानी वेलु नचियार, बिरसा मुंडा, नरसिम्हा रेड्डी जैसे और भी कई स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में जानकारी मिली. अंबालिका ने बच्चों को चलचित्र के माध्यम से प्लासी का युद्ध, बक्सर का युद्ध सहित स्वतंत्रता संग्राम के बारे में भी रोचक जानकारियां दीं. उन्होंने बच्चों से इतिहास से जुड़े प्रश्न भी पूछे और उन्हें पुरस्कृत भी किया. ये सत्र बच्चों के लिए ही नहीं बल्कि ‘शब्द संसार‘ मंच में मौजूद सभी दर्शकों के लिए ज्ञानवर्धक रहा. चौथा सत्र में सीमा वाही मुखर्जी ने किया. कठपुतली निर्माण कार्यशाला में तोते की मिमिक्री करके बच्चों का ध्यान अपनी ओर केंद्रित किया और आवाज बदलकर बच्चों से बात की. साथ ही उन्होंने बच्चों के अलग-अलग समूहों को कठपुतली बनवाकर गतिविधियां कराई, जिसमें रंग-बिरंगे कागजों, ग्लू, स्केच पेन का इस्तेमाल करके उन्होंने बच्चों से पक्षियों की कठपुतलियां बनवाईं. बच्चों ने इस सत्र में काग़ज़ का प्रयोग करके विभिन्न प्रकार की आकृतियां बनानी सीखीं.