नई दिल्ली: भाषा सिर्फ संवाद का जरिया नहीं है. यह सांस्कृतिक मूल्यों, परंपराओं और सामाजिक मानदंडों को भी दर्शाती है. संस्कृत का भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान से गहरा नाता है.सच तो यह है कि भारत की पहचान संस्कृत में ही झलकती है.” उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने यह बात राजधानी स्थित भारतीय विद्या भवन में अंग्रेजी-संस्कृत शब्दकोष के विमोचन के अवसर पर कही. उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमारे सबसे प्रिय ग्रंथ, वेद, उपनिषद और महाभारत तथा रामायण जैसे महाकाव्य इसी भाषा में लिखे गए थे. यह महान ऋषियों और मनीषियों की भाषा है जिनके दार्शनिक प्रवचन आज भी दुनिया को ज्ञान देते हैं. संस्कृत को कई आधुनिक भारतीय भाषाओं की जननी माना जाता है. हिंदी, मराठी, बंगाली और अन्य भाषाओं की शब्दावली और भाषाई संरचना संस्कृत से बहुत अधिक उधार ली गई है, जो कि एक आधारभूत स्तंभ मात्र है. उन्होंने कहा कि भारत समृद्ध भाषाओं का देश है, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, बस उनकी गहराई देखें और जब आप संस्कृत को देखेंगे तो यह तंत्र दुनिया को बताएगा कि हमारा भारत जैसा और कोई देश नहीं है. उपराष्ट्रपति ने कहा कि संस्कृत एक अनोखी और सुखदायक भाषा है, हो सकता है कि आप संस्कृत न समझते हों, लेकिन यदि आप संस्कृत में कुछ श्लोक सुनते हैं, तो आपकी बुद्धि उच्च स्तर पर पहुंच जाती है, आपके मन को शांति मिलती है, आपकी आत्मा आपके हृदय और मन से जुड़ जाती है.
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि संस्कृत जब बोली जाती है, मंत्र चांटें जाते हैं, एक नई भावना होती है.और वह तो तब होता है जब उसका पूरा अर्थ हम अर्थ भी नहीं रखते. थोक में अगर पूरा अर्थ समझ लिया जाए, तो क्या होगा? हमारे शरीर में आंतरिक शांति और सकारात्मकता और उदात्तता पूरी तरह से जागृत हो जाएगी. दैनिक जीवन में संस्कृत मंत्रों और छंदों को शामिल करना एक परिवर्तनकारी अभ्यास हो सकता है जो अधिक संतुलित, सामंजस्यपूर्ण और प्रबुद्ध अस्तित्व की ओर ले जाएगा. उपराष्ट्रपति ने दावा किया कि संस्कृत साहित्य में निहित सद्भाव, प्रकृति के प्रति सम्मान और ज्ञान की खोज के सिद्धांत, समकालीन वैश्विक परिदृश्य में पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हैं. उन्होंने कहा कि इस शब्दकोष का विमोचन ऐसे समय में हुआ है जब विश्व स्वदेशी भाषाओं और ज्ञान प्रणालियों के संरक्षण और संवर्धन के महत्त्व को तेजी से पहचान रहा है.हम यह भी कहते हैं मातृभाषा में पढ़ें, अंग्रेजी बोलने वाले की क्षमताएं और उसकी भाषाएं अंग्रेजी बोलने वालों तक ही सीमित हैं. यह उस व्यक्ति के ज्ञान और बुद्धिमत्ता को प्रतिबिंबित नहीं कर सकता जो अंग्रेजी में बहुत पारंगत है. पर यदि संस्कृत कोई अच्छा बोलता है तो वह विद्वान है. संस्कृत सिर्फ एक भाषा नहीं है, यह उससे कहीं बढ़कर है, संस्कृत एक जीवन पद्धति है, संस्कृत एक दर्शन है. संस्कृत मानवता को परिभाषित करती है, संस्कृत सभी को जोड़ती है, संस्कृत शांति और स्थिरता उत्पन्न करती है.