नई दिल्ली: विधि एवं न्याय मंत्रालय के विधायी विभाग ने विज्ञान भवन में भारतीय संविधान की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर एक कार्यक्रम आयोजित किया. इस अवसर पर भारतीय संविधान की प्रस्तावना पढ़ी गई, राम जन्मभूमि फैसले का हिंदी संस्करण जारी किया गया तथा संविधान के आनलाइन हिंदी पाठ्यक्रम का शुभारंभ किया गया. विधायी विभाग द्वारा ‘पिछले 75 वर्षों में भारत के संविधान का विकास और उपलब्धियां‘ तथा ‘सामाजिक न्याय और महिला सशक्तिकरण: संविधान के तहत सकारात्मक कार्रवाई‘ जैसे कार्यक्रम आयोजित किए गए. कार्यक्रम में भारत के संविधान के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया और एक दूरदर्शी दस्तावेज तथा सभी के लिए व्यावहारिक मार्गदर्शक के रूप में इसकी व्याख्या की गई. 26 नवंबर, 1949 को संविधान को अंगीकार करना एक महत्त्वपूर्ण अवसर था, जिसने स्वतंत्र भारत के लोकाचार, आदर्शों और मूल्यों को परिभाषित किया. कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए विधि एवं न्याय राज्य मंत्री- स्वतंत्र प्रभार अर्जुन राम मेघवाल ने इस बात पर जोर दिया कि संविधान के आदर्श और मूल्य हम सभी के लिए मार्गदर्शक हैं. मेघवाल ने कहा कि संविधान की प्रस्तावना में ‘समानता‘, ‘स्वतंत्रता‘ और ‘बंधुत्व‘ शब्दों का भारत के परिप्रेक्ष्य में महत्त्वपूर्ण, प्रासंगिक और ऐतिहासिक महत्त्व है. मेघवाल ने कहा कि ‘समानता‘, ‘स्वतंत्रता‘ और ‘बंधुत्व‘ शब्दों का एक विशेष संबंध है क्योंकि संविधान सभा की प्रारूप समिति के अध्यक्ष डा बीआर अंबेडकर ने कहा था कि ये शब्द भारत की संस्कृति, लोकाचार और परंपरा की देन हैं. मंत्री मेघवाल ने कहा कि संविधान की प्रस्तावना में ‘समानता‘, ‘स्वतंत्रता‘ और ‘बंधुत्व‘ शब्दों को जोड़ने में डा बीआर अंबेडकर का महत्त्वपूर्ण प्रयास रहा है और प्रत्येक शब्द समान रूप से महत्त्वपूर्ण है. हमारे भारतीय इतिहास, संस्कृति और परंपरा से प्रेरणा लेते हुए, मेघवाल ने कहा कि डा बीआर अंबेडकर ने कहा था कि वैशाली का लिच्छवि वंश भारत का पहला गणराज्य था. उन्होंने कहा कि ‘समानता‘, ‘स्वतंत्रता‘ और ‘बंधुत्व‘ शब्द किसी भी गणराज्य से अनिवार्य रूप से संबंधित हैं और भारत ने इन शब्दों को अपने संविधान में शामिल किया है.
समाज सुधारक ईश्वर चंद्र विद्यासागर को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा कि बंधुत्व भारत के संविधान में निहित ‘मित्रता और भाईचारे‘ का प्रतीक है. मेघवाल ने कहा कि यह कार्यक्रम उन महिलाओं के योगदान को भी मान्यता देता है जो संविधान के प्रारूपण और निर्माण में शामिल थीं. उन्होंने उनके प्रयासों की सराहना की. उन्होंने कहा कि सामाजिक न्याय और महिला सशक्तिकरण हमारे संविधान में परिलक्षित महत्त्वपूर्ण पहलू हैं. अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने इस बात पर जोर दिया कि हम संविधान दिवस इसलिए मना रहे हैं ताकि हम खुद को आश्वस्त कर सकें कि हम राष्ट्र की इस महान यात्रा का हिस्सा बने रहेंगे. वेंकटरमणी ने कहा कि संविधान लचीला है क्योंकि हम भारत के लोगों ने इसे लचीला बनाया है. भारतीय विधि आयोग की सदस्य सचिव डा रीता वशिष्ठ ने इस बात पर जोर दिया कि आयोग हितधारकों से परामर्श करने तथा संवैधानिक लक्ष्यों को पूरा करने के लिए सरकार को व्यापक सिफारिशें प्रदान करने में कानूनी सुधारों के अपने प्रयासों में दृढ़ रहा है. विधि एवं न्याय मंत्रालय के विधायी विभाग एवं विधिक कार्य विभाग के सचिव डा राजीव मणि ने उद्घाटन भाषण देते हुए कहा कि सरकार भारत के संविधान की कसौटी पर नए पहल और कानूनी सुधार लाने तथा हमारे संवैधानिक मूल्यों को मजबूत बनाने के लिए हमेशा आगे रही है. उद्घाटन कार्यक्रम के बाद ‘सामाजिक न्याय और महिला सशक्तिकरण: संविधान के तहत सकारात्मक कार्रवाई‘ शीर्षक से एक पूर्ण सत्र आयोजित किया गया जिसमें दिल्ली उच्च न्यायालय की न्यायाधीश न्यायमूर्ति रेखा पल्ली, भारत के अतिरिक्त सालिसिटर जनरल चेतन शर्मा और विधि एवं न्याय मंत्रालय के पूर्व सचिव पीके मल्होत्रा, नोएडा स्थित सिम्बायोसिस ला स्कूल के निदेशक डा चंद्रशेखर रावंडले ने अपने विचार रखे. न्यायमूर्ति पल्ली ने इस बात पर जोर दिया कि हम एक ऐसे संविधान का जश्न मना रहे हैं जो समय की कसौटी पर खरा उतरा है. संविधान के विभिन्न प्रावधानों का हवाला देते हुए उन्होंने दोहराया कि संविधान न केवल न्यायोचित और मातृत्व राहत प्रदान करता है, बल्कि इसमें सकारात्मक कार्रवाई के लिए भी प्रावधान हैं. विधि एवं न्याय मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव डा मनोज कुमार ने समापन भाषण दिया. कार्यक्रम में विधि क्षेत्र के सदस्य, विधि विद्यालयों एवं महाविद्यालयों के छात्र, पीआईबी के अधिकारी तथा मीडिया के वरिष्ठ पत्रकार सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे.