नई दिल्लीः इस बार गणतंत्र दिवस पर सनातन धर्म-संस्कृति, पुराण प्रेमियों, हिंदी और प्रकाशन जगत के लिए यह एक खुश कर देने वाली खबर थी. धार्मिक पुस्तकों के विश्व प्रसिद्ध प्रकाशक गीता प्रेस ट्रस्ट बोर्ड के अध्यक्ष और चर्चित 'कल्याण' पत्रिका के 38 वर्षों तक संपादक रहे राधेश्याम खेमका को पद्म विभूषण पुरस्कार मिलने की घोषणा से काशी, गोरखपुर, दिल्ली ही नहीं पूरे देश में भारतीय परंपरा से जुड़े पाठक खुश हुए. हालांकि राधेश्याम खेमका को यह सम्मान मरणोपरांत मिला, पर उनके काम को यह मान मिलना प्रशंसनीय है. खेमका का जन्म 12 दिसंबर, 1935 को बिहार के मुंगेर जिले में हुआ और निधन 3 अप्रैल, 2021 को काशी के केदार घाट पर. आपने ताउम्र गंगाजल का सेवन किया. गीता प्रेस ट्रस्ट के ट्रस्टी देवी दयाल अग्रवाल के अनुसार, कल्याण पत्रिका 1926 से गोरखपुर से प्रकाशित हो रही है. हालांकि एक वर्ष यह बंबई से भी छपी थी. इसके आदि संपादक भाई जी हनुमान प्रसाद पोद्दार थे. महात्मा गांधी ने भी कल्याण के पहले अंक के लिए 'स्वाभाविक' नामक लेख लिखा था. उन्होंने ही इस पत्रिका में विज्ञापन और आलोचना नहीं छापने की बात कही थी, जिसका अभी तक पालन होता चला आ रहा है. राधेश्याम खेमका जब गीता प्रेस से जुड़े तो वर्ष 1982 के नवंबर और दिसंबर माह के कल्याण का उन्होंने संपादन किया. इसके बाद 1983 के मार्च अंक से अप्रैल 2021 तक 86 वर्ष की उम्र में मृत्यु के पूर्व तक वह कल्याण के अंकों का संपादन करते. उनके संपादन में 38 वार्षिक विशेषांक, 460 मासिक अंक प्रकाशित हुए. इस दौरान कल्याण की 9 करोड़ 54 लाख 46 हजार प्रतियां प्रकाशित हुईं. कल्याण में पुराणों और लुप्त हो रहे संस्कारों के साथ कर्मकांड की पुस्तकों का प्रमाणिक संस्करण भी उनके सम्पादकत्व में प्रकाशित हुए.
खेमका वर्ष 2014 से निधन होने तक गीता प्रेस ट्रस्ट बोर्ड के अध्यक्ष रहे. वर्ष 2002 में उन्होंने काशी में वेद विद्यालय की स्थापना की और अधिकांश समय काशी में ही गुजारने लगे. गोरखपुर में कार्य के सिलसिले में उनका आना-जाना रहता रहा है. 60 से अधिक वर्षों तक उन्होंने इलाहाबाद में माघ मेला के दौरान एक माह का कल्पवास किया. खेमका के संपादन में गीता प्रेस में बड़े पैमाने पर सांस्कृतिक और साहित्यिक बदलाव देखने को मिला. लुप्तप्राय पुस्तकों के प्रामाणिक संस्करण प्रकाशित करने को उन्होंने चुनौती के रूप में लिया और प्रकाशित कराया. पुराणों का कल्याण के माध्यम से एक तरह से सहज भाषा में पुनर्प्रकाशन हुआ. आरोग्य अंक और शिक्षांक जैसे समसामयिक विषयों पर विशेषांक निकालकर उन्होंने समाज को दिशा देने की कोशिश की. राधेश्याम खेमका बचपन से ही धार्मिक विचारों से ओतप्रोत थे. वे स्वामी करपात्री महाराज के कृपापात्र भी रहे. उनका जीवन बहुत ही संयमित था और साधु-संतों और गरीबों की सेवा उनके स्वभाव का हिस्सा थी. वह एक गृहस्थ संत और पूर्ण रूप से सात्विक और साधु स्वभाव के व्यक्ति थे. गीता प्रेस उनके कार्यकाल के दौरान आधुनिक तकनीक में उन्नत हुआ. गीताप्रेस में करोड़ों रुपए की मशीनें उन्हीं के अध्यक्षीय कार्यकाल में आईं. खेमका ने श्रीवामनपुराणांक, चरितनिर्माणांक, श्रीमत्स्यपुराणांक, संकीर्तनांक, शक्ति उपासना अंक, शिक्षांक, पुराणकथांक, देवता अंक, योगतत्वांक, संक्षिप्त भविष्यपुराणांक, शिवोपासनांक, श्रीरामभक्ति अंक, गोसवा अंक, धर्मशास्त्रांक, कूर्मपुराणांक, भगवल्लीलांक, वेदकथांक, संक्षिप्त गरुणपुराणांक, आरोग्य अंक, नीतिसार अंक, भगवत्प्रेम अंक, व्रतपर्वोत्वस अंक, देवी पुराण (महाभागवत) संस्कार अंक, अवतारकथांक, श्रीमद्देवीभागवत अंक (पूर्वांर्ध), श्रीमद्देवीभागवत अंक (पूर्वार्ध), श्रीमद्देवीभागवत अंक (पूर्वार्ध), श्रीमद्देवीभागवत अंक, भक्तमाल अंक, ज्योतिषतत्वांक, सेवाअंक, गंगा अंक, श्रीशिवमहापुराण अंक (पूर्वार्ध), श्रीशिवमहापुराण अंक (उत्तरार्ध), श्रीराधामाधव अंक और श्रीगणेशपुराणांक अप्रैल 2021 के अंक तक का संपादन किया था.