नई दिल्ली: “हमारे मूल मूल्य हमारे शाश्वत खजाने, वेद, उपनिषद, पुराण, महाकाव्य, रामायण और महाभारत, तथा गीता से निकलते हैं.” यह बात उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने राष्ट्रीय रक्षा महाविद्यालय में ‘भारत के बुनियादी मूल्य, हित और उद्देश्य’ विषय पर अपने व्याख्यान में कही. उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमारे सबसे प्रमुख बुनियादी मूल्य उपनिषद के एक श्लोक में परिलक्षित होता है. ‘ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु नीर-अमायाः, सर्वे भद्रान्नि पश्यन्तु, मां कश्चिद-दुःख-भाग-भवेत् जिसका अर्थ है, सभी सुखी हों, सभी बीमारियों से मुक्त हों, सभी को शुभता मिले और किसी को कोई कष्ट न हो. यह गहन प्रार्थना भारत की मूल भावना को दर्शाती है. उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि एक ऐसा राष्ट्र जो सिर्फ़ अपने लिए नहीं, बल्कि पूरी मानवता के लिए कल्याण चाहता है और इसकी व्यापकता वसुधैव कुटुम्बकम, पूरा विश्व एक परिवार है, जिसकी उत्पत्ति भी महा उपनिषद में हुई है जो एक अन्य प्राचीन, कालातीत भारतीय ग्रंथ है, में स्पष्ट रूप से व्यक्त की गई है. उपराष्ट्रपति ने कहा कि सदियों तक भारत के मूल मूल्य इसकी नियति की नींव रहे हैं. ये हमारे सभ्यतागत लोकाचार और सार पर आधारित हैं. हालांकि, जिस समय में हम रह रहे हैं, ये प्राचीन ज्ञान और आधुनिकता के मिश्रण के रूप में उभरे हैं, जिसका उद्देश्य लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करना है. भारत, जहां मानवता की आबादी का छठा हिस्सा रहता है, दुनिया की आध्यात्मिक राजधानी है, जो उदारता और दिव्यता का उद्गम स्थल है. इसके मूल मूल्यों ने इसी पृष्ठभूमि में आकार लिया है.
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि भारत के मूल मूल्यों से प्रेरित होकर, लोग सदियों से अपनी आध्यात्मिक प्यास बुझाने और अपनी आत्मा को शांति देने के लिए इस भूमि की यात्रा करते रहे हैं, इस प्रक्रिया में वे भी समृद्ध हुए हैं और इस भूमि को भी समृद्ध किया है. प्रणब मुखर्जी के इस विचार- “स्वीकृति और आत्मसात के इस लोकाचार ने भारतीय सभ्यता को परिभाषित किया है और इसे दुनिया का एक मिलन स्थल बना दिया है, हमें इस भावना को पोषित और संरक्षित करना चाहिए जिसने हमारे देश को कई संस्कृतियों का एक समृद्ध मिश्रण बना दिया है.” का उल्लेख करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि तक्षशिला नालंदा जैसे ऐतिहासिक ज्ञान केंद्रों की भूमि भारत ने अपने सुखदायक मूल्यों के कारण आत्मज्ञान की तलाश में जिज्ञासु आत्माओं को आकर्षित किया. उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना इसके मार्गदर्शक उद्देश्य और सिद्धांतों को निर्धारित करती है, और एक तरह से भारत के मूल मूल्यों को प्रतिबिंबित करती है. अपने सभी नागरिकों के लिए न्याय, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, आस्था और उपासना की स्वतंत्रता, स्थिति और अवसर की समानता सुनिश्चित करना, और उन सभी के बीच भाईचारे को बढ़ावा देना, व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता को सुनिश्चित करना. हाल ही में, जैसा कि मैंने संकेत दिया, जी20 के अध्यक्ष, भारत ने अपने मूल मूल्यों से प्रेरित होकर जीडीपी-केंद्रित की जगह मानव-केंद्रित वैश्विक प्रगति की ओर बदलाव का समर्थन किया, जिसमें विभाजन के आगे एकता पर जोर दिया गया. उपराष्ट्रपति ने कहा कि एकता और विविधता हमेशा से ही विचारों और कार्यों दोनों में ही परिलक्षित होती रही है. भारत पूरे देश में त्योहारों की भिन्नताओं को स्वीकार करता है. समावेशी और विभाजन से कोसों दूर व्यंजन, भाषाएं, संस्कृतियां इसकी ताकत हैं.