नई दिल्ली: “पंडित विष्णुकांत शास्त्री सारस्वत साधक और बहुआयामी सक्रियता से भरे सुसंस्कृत जीवन को एक प्रतिमान के रूप में स्थापित करने वाले विद्वान राजनेता थे. वे भारतीय दर्शन और काव्य की महान परंपरा के संवाहक और पोषक थे.” केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने यह बात प्रधानमंत्री संग्रहालय में साहित्य अकादेमी द्वारा प्रकाशित विष्णुकांत शास्त्री रचना-संचयन के लोकार्पण समारोह में बतौर मुख्य अतिथि कही. उन्होंने कहा कि प्राचीन से अद्यतन तक का साहित्य शास्त्री की विचारणा और आलोचना का विषय बना. इतना बड़ा आयाम दुर्लभ है और उसमें समान पैठ तो अति दुर्लभ है. यह विशेषता आचार्य शास्त्री को परंपरा पोषक वाली सोच के विद्वानों और नई पीढ़ी दोनों से जोड़ती है. प्रधान ने कहा कि शिक्षासाहित्यसमाजसंस्कृतिअध्यात्म राजनीति-सभी क्षेत्रों में शास्त्री जी ने अपना स्मरणीय योगदान दिया और उन पर अपनी अमिट छाप भी छोड़ी है. रचना-संचयन का लोकार्पण करते हुए उन्होंने कहा कि शास्त्री की लोकप्रियता के मुझे तीन स्पष्ट कारण दिखते हैं उनकी विद्वत्ताविनयशीलता और विश्वसनीयता. यह तीन गुण शास्त्री को उन लोगों में भी लोकप्रिय बना देते थे जो उनसे असहमत लोग थे. केंद्रीय मंत्री ने कहा कि शास्त्री ने भारतीय संस्कृतिधर्मअध्यात्म और साहित्य को आगे बढ़ाने में बड़ा योगदान दिया है. उन्हें साहित्य की सभी विधाओं में कविता बहुत प्रिय भी. कविता उनके लिए प्रीतिकर जीवन ऊर्जा थी. काव्य के प्रति अत्यंत प्रेमभगवान राम के प्रति अपार निष्ठा और पूर्ण समर्पण उन्हें विशिष्ट बना देते रहे हैं. प्रधान ने कहा कि अपनी प्रेरक वाणीसुचिंतित लेखन और व्याख्यानों से शास्त्री जी ने अनेक व्यक्तियोंसंस्थाओं और देश को नई दिशा दी. यही वह संत-समान कार्य है जो आचार्य विष्णुकांत शास्त्री को हमारे समाज और देश के श्रेष्ठतम सत्पुरुषों की अग्रिम पंक्ति में विराजमान करता है.

केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने अपना एक संस्मरण साझा करते हुए बताया कि उन्होंने पहली बार देश की एकता के मंदिर ‘संसद भवन‘ का दर्शन विष्णुकांत शास्त्री के माध्यम से ही किया था. उन्होंने कहा कि शास्त्री लक्ष्य-आधारित जीवन जीने वाले बड़े व्यक्तित्व थे. उनका हिंदी प्रेम अनन्य था. प्रधान ने कई घटनाओं का उल्लेख करते हुए शास्त्री के व्यक्तित्व के विभिन्न आयामों पर विस्तार से चर्चा की. उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानंद से लेकर शास्त्री जैसी विभूतियों ने जो भारतीयता का वाचन किया था नई शिक्षा नीति उसी का सुफल है. उन्होंने कहा कि यह एक पुस्तक के लोकार्पण का मात्र अवसर भर नहीं है बल्कि यह एक उच्च विचारधारा का उत्सव है और यही शास्त्री के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है. प्रारंभ में अकादेमी के अध्यक्ष माधव कौशिक ने धर्मेंद्र प्रधानरचना-संचयन के संपादक डा प्रेमशंकर त्रिपाठी एवं संस्कृति मंत्रालय के सचिव अरुनीश चावला का स्वागत अंगवस्त्रम एवं अकादेमी के प्रकाशन भेंट कर किया. स्वागत वक्तव्य में साहित्य अकादेमी के सचिव डा के श्रीनिवासराव ने कहा कि यह अवसर अकादेमी के लिए विशिष्ट है. उन्होंने विष्णुकांत शास्त्री रचना-संचयन की सामग्री और पुस्तक के संपादक के बारे में संक्षेप में बताया. पुस्तक के संपादक  और विष्णुकांत शास्त्री के योग्य शिष्य डा प्रेमशंकर त्रिपाठी ने अपने वक्तव्य में कहा कि आचार्य शास्त्री का व्यक्तित्व बहुआयामी था. उन्होंने विस्तार से शास्त्री के रचनाकर्म पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि आचार्य शास्त्री ने साहित्य और राजनीति को पास लाने का कार्य किया. अकादेमी के अध्यक्ष माधव कौशिक ने कहा कि अकादेमी की रचना-संचयन की शृंखला में उन्हीं साहित्यकारों की रचनाओं में से चुन कर ग्रंथ प्रकाशित किया जाता हैजिन्होंने भारतीय आत्मा को समझा है. इस तरह अकादेमी ऋषि-ऋण उतारने का कार्य कर रही है. उन्होंने आचार्य विष्णुकांत शास्त्री के विराट वैदुष्य की भी चर्चा की. कार्यक्रम के अंत में अकादेमी की उपाध्यक्ष डा कुमुद शर्मा  ने सभी अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त किया और कहा कि शास्त्री ने भारतीय जीवनमूल्यों को पुनः स्थापित करने का बड़ा कार्य किया है.