पटना  विकास के आधुनिक विमर्शों पर केंद्रित पत्रिका 'विकास सहयात्री ' के तत्वावधान  में कविता-संध्या का आयोजन  किया गया जिसमें जानेमाने कवियों ने अपनी रचनाओं  का पाठ किया। गोष्ठी की अध्यक्षता लेखक व विकास सहयात्री के सम्पादक शिवदयाल ने की जबकि संचालन कवि-कथाकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने किया। 

सहयात्री के सम्पादन- प्रकाशन से जुड़े चर्चित चिकित्सक एवं कवि  डा. निखिलेश्वर प्रसाद वर्मा ने आयोजन की पृष्ठभूमि पर प्रकाश  डाला। पत्रिका के प्रणेता एवं सूत्रधार अरुण कुमार सिंह, सेवानिवृत्त  डिप्टी सीएजी ने सन् 2000 से लगातार प्रकाशित हो रही इस पत्रिका  के विशिष्ट अवदानों की चर्चा करते हुए बताया कि 2017 से पत्रिका अर्थ संकट से जूझ रही है। उन्होंने उमीद जताई कि सबके सहयोग से पत्रिका नये कलेवर में पूर्ववत प्रकाशित होती रहेगी ।

 देर तक चली इस कविता संध्या का शुभारंभ भावना शेखर ने स्त्रियों की स्थिति पर केंद्रित अपनी संवेदनशील रचना 'हे मनु' तथा 'प्रेम ' से की। वरिष्ठ कवि एवं पत्रकार अनिल विभाकर ने ताजा धारदार राजनीतिक कविताएँ 'सूखा दरख्त' तथा 'एक जरूरी लाॅकेट' सुनाईं। चर्चित कवि शहंशाह आलम ने 'अपने को रचते हुए ' तथा 'मैं उससे मिला' जैसी प्रतीकात्मक रचनाएँ  पढ़ीं। महत्वपूर्ण कवि शरद रंजन शरद ने अखबार श्रृंखला की कविताओं सहित 'अलगनी' का पाठ किया। मधेपुरा से पधारे कवि अरविन्द श्रीवास्तव  ने 'समय ठहर गया', 'प्रेम में', 'यह देह', ' मैंने जो किया' आदि रचनाएँ सुनाईं । वरिष्ठ रचनााकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने ' जैसे बरसती हैं नेमतें,' कविता सहित 'फूल बचाना जी', तथा 'रोशनियों के मोती' जैसे गीत सुनाकर मोह लिया। डा  निखिलेश्वर प्रसाद वर्मा ने महिला विरोधी  हिंसा के खिलाफ अपनी सशक्त कविता 'तेरह साल की लड़की' तथा 'इस बारिश में' का पाठ किया। 

वरिष्ठ कवि एवं नाटककार सतीश प्रसाद सिन्हा ने अपनी हिन्दी तथा भोजपुरी रचनाएँ  सुनाईं। गीतकार डाॅ विजय प्रकाश ने ' अब नहीं पूछती तुम प्रश्न  पहले से प्रिय..' जैसे सरस गीतों से समाँ बाँध दिया। युवा कवि एवं जनपथ पत्रिका से जुड़े  सुनील श्रीवास्तव ने 'समय उसके इशारे पर चलता था' और 'रोजमर्रा' जैसी बड़े फलक की कविताएँ पढ़कर कविता के उज्ज्वल भविष्य के प्रति आश्वस्त किया । 

युवा हस्ताक्षर सुभाष  रवींद्र झा ने बिहार पर केंद्रित लंबी कविता के अतरिक्त अन्य संवेद्य रचनाओं से खासा प्रभावित किया। वरिष्ठ  रचनाकार मधुरेश नारायण एवं  हरेन्द्र सिन्हा ने सस्वर रचना पाठ कर श्रोताओं को मुग्ध कर दिया। अंत में अध्यक्षीय संबोधन में  शिवदयाल ने रचनाओं  के स्तर तथा कथ्य एवं शिल्प की विविधता पर संतोष प्रकट किया और रचनाशीलता के संदर्भ  में ऐसी गोष्ठियाें के महत्व पर प्रकाश  डाला।  उन्होंने अपनी चर्चित रचनाएँ 'नंदी का वंशज',' पगडंडियाँ' तथा 'फसल' सुनाईं। प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट नीरद पूरे समय उपस्थित रहे।