नई दिल्लीः देश के प्रमुख प्रकाशन गृह 'वाणी प्रकाशन' ने 'भारतीय ज्ञानपीठ न्यास' के साथ भारतीय ज्ञानपीठ के चर्चित प्रकाशनों का एकाधिकारिक प्रकाशन अधिकार हासिल कर लिया है. प्रकाशन ने इस आशय के करार की सूचना अपनी एक विज्ञप्ति में दी है. विज्ञप्ति के अनुसार 'वाणी प्रकाशन समूह' ने ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित पुस्तकों को विशेष रूप से प्रकाशित करने की ज़िम्मेदारी ली है. समूह के प्रबन्ध निदेशक व अध्यक्ष अरुण माहेश्वरी ने इस अवसर पर अपने बयान में कहा कि भारतीय ज्ञानपीठ ट्रस्ट के प्रकाशनों की ज़िम्मेदारी वास्तव में गहन सम्मान का विषय है. भारतीय ज्ञानपीठ ट्रस्ट की नींव सन 1943 से ज्ञान की विलुप्त शाखाओं को प्रकाशित करने व भारतीय भाषाओं में साहित्य को सम्मानित करने के लिए समर्पित रही है. भारतीय ज्ञानपीठ की गरिमा और प्रतिष्ठा अविरल और विश्वव्यापी है.
अरुण माहेश्वरी ने कहा कि यह सुनिश्चित करना हमारी निजी योजना और नेतृत्व का हिस्सा रहा है कि प्रत्येक भाषा के साहित्य को वह ख्याति प्राप्त हो, जिसकी वह हकदार हैं. भारतीय ज्ञानपीठ के गौरवशाली इतिहास के साथ जुड़ कर वाणी प्रकाशन ग्रुप गौरवान्वित और उत्साहित है. याद रहे कि वाणी प्रकाशन की स्थापना छह दशक पूर्व हिंदी साहित्य के प्रसार-प्रचार के लिए की गई थी. उस समय अंग्रेज़ी भाषा बौद्धिक व लोकप्रिय रूप से प्रसिद्ध थी. वाणी प्रकाशन ने इस भाषाई असन्तुलन को समाप्त करने की न सिर्फ़ कोशिश की बल्कि अपनी मुहिम में प्रचुर सफलता भी प्राप्त की. इसी तरह भारतीय ज्ञानपीठ ट्रस्ट सन 1943 में अपनी स्थापना के बाद से ही ज्ञान के संवर्द्धन उद्देश्यों की पूर्ति के प्रति समर्पित भाव से कार्य करता आ रहा है. इन दोनों समूहों के साथ जुड़ने से निश्चय ही भारतीय भाषाओं के प्रकाशनों को बल मिलेगा.