नई दिल्लीः हिंदी साहित्य जगत अपने आप में इतना खोया हुआ है कि बहुत बार उसे अपने साथियों, सहयोगी लेखकों के स्वास्थ्य की ही खबर नहीं होती. से रा यात्री बीमार हैं. इसी महीने में 10 जुलाई, 1932 को उनका जन्म हुआ. उम्र के लिहाज से 87 छू चुके से रा का मूल नाम सेवा राम यात्री है. साल 1971 में 'दूसरे चेहरे' नामक कथा संग्रह से शुरू हुई उनकी साहित्यिक यात्रा हाल के सालों तक अनवरत जारी रही, जिसके बीच उन्होंने तकरीबन 18 कहानी संग्रह, 33 उपन्यास, 2 व्यंग्य संग्रह, 1 संस्मरण तथा 1 संपादित कथा साहित्य से हिंदी जगत को समृद्ध किया. वह तो भला हो अशोक मिश्र और ग़ज़लकार कमलेश भट्ट कमल का जिन्होंने काफी अरसे से बीमार चल रहे महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा के राइटर इन रेजीडेंस रहे इस बुजुर्ग कथाकार से. रा. यात्री के स्वास्थ्य का न केवल हालचाल लिया, बल्कि उनकी तस्वीर भी सोशल मीडिया पर पोस्ट की.
अशोक मिश्र ने लिखा साहित्य के शीर्षस्थ कथाकारों के मित्र रहे यात्रीजी बहुत ही संवेदनशील व्यक्ति रहे हैं. कवि-कथाकार मित्र कमलेश भट्ट कमल साथ में थे. उनकी आत्मीयता कि वे हम दोनों का हाथ अपने हाथ में लेकर वे बहुत देर कुछ महसूस करते रहे. बातचीत करते रहे. याददाश्त बची हुई है. सब कुछ याद है उनको. वाकई, दराजों में बंद दस्तावेज, लौटते हुए, कई अँधेरों के पार, अपरिचित शेष, चाँदनी के आरपार, बीच की दरार, टूटते दायरे, चादर के बाहर, प्यासी नदी, भटका मेघ, आकाशचारी, आत्मदाह, बावजूद, अंतहीन, प्रथम परिचय, जली रस्सी, युद्ध अविराम, दिशाहारा, बेदखल अतीत, सुबह की तलाश, घर न घाट, आखिरी पड़ाव, एक जिंदगी और, अनदेखे पुल, कलंदर, सुरंग के बाहर जैसे उपन्यास; केवल पिता, धरातल, अकर्मक क्रिया, टापू पर अकेले, दूसरे चेहरे, अलग-अलग अस्वीकार, काल विदूषक, सिलसिला, अकर्मक क्रिया, खंडित संवाद, नया संबंध, भूख तथा अन्य कहानियाँ, अभयदान, पुल टूटते हुए, विरोधी स्वर, खारिज और बेदखल व परजीवी जैसे कथा संग्रह; किस्सा एक खरगोश का व दुनिया मेरे आगे जैसे व्यंग्य संग्रह और लौटना एक वाकिफ उम्र का जैसे संस्मरण लिखने वाले से रा यात्री जल्द स्वस्थ्य हों और सृजन में जुटें यही कामना.