नई दिल्ली: ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता के युग में विज्ञान लेखन‘ पर सत्र ‘विज्ञानिका: विज्ञान साहित्य महोत्सव‘ का एक प्रमुख आकर्षण था. इस सत्र की अध्यक्षता जेनेटिक इंजीनियरिंग और जैव प्रौद्योगिकी के लिए अंतर्राष्ट्रीय केंद्र नई दिल्ली के डा नील सरोवर भावेश ने की. सत्र में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और विज्ञान संचार के इंटरसेक्शन की खोज की गई. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान बीएचयू के डा रुचिर गुप्ता ने विज्ञान लेखन में विशेष रूप से भारतीय भाषाओं में पारंपरिक ज्ञान के संरक्षण और प्रचार में एआई के बढ़ते महत्त्व पर प्रकाश डाला. सीएसआईआर-उत्तर पूर्व विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी संस्थान- निष्ट जोरहाट के प्रधान वैज्ञानिक डा मंटू भुयान ने विभिन्न भारतीय भाषाओं के लिए एआई-संचालित अनुवाद टूल की आवश्यकता पर चर्चा की और वैज्ञानिक जानकारी की प्रामाणिकता को सत्यापित करने में इसकी भूमिका पर प्रकाश डाला. एक समानांतर सत्र में सीएसआईआर-राष्ट्रीय विज्ञान संचार एवं नीति अनुसंधान संस्थान के डा परमानंद बर्मन और टीम स्वस्तिक ने ‘विज्ञान संचार के लिए इंटरैक्टिव और नए दृष्टिकोण‘ पर एक कार्यशाला का नेतृत्व किया, जिसमें वीडियो, पाडकास्ट और सोशल मीडिया जैसे नवीन तरीकों को शामिल किया गया.
दूसरे वैज्ञानिक सत्र का शीर्षक था ‘लोककथा से भविष्य तक- एक भारतीय साहित्यिक अन्वेषण‘. इस सत्र की अध्यक्षता डा रुचिर गुप्ता ने की. वक्ता डा पूर्णिमा देवी बर्मन ने की. उन्होंने हरगिला पक्षी संरक्षण पर अपना काम साझा किया, और संरक्षण प्रयासों के साथ संस्कृति को एकीकृत करने के महत्त्व पर बल दिया. सीएसआईआर- राष्ट्रीय विज्ञान संचार एवं सूचना केंद्र के पूर्व निदेशक डा मनोज कुमार पटैरिया और बीके त्यागी ने लोककथाओं को विज्ञान के साथ मिश्रित करने पर अपने भाषणों का ध्यान केंद्रित किया. हरियाणा के कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय की प्रो नीरा राघव ने विज्ञान को आम जनता के लिए सुलभ बनाने के महत्त्व पर बल दिया. सत्र के बाद मनोरंजक विज्ञान कठपुतली शो का आयोजन किया गया. इस दिन का समापन बहुप्रतीक्षित ‘विज्ञान कवि सम्मेलन‘ से हुआ, जिसकी अध्यक्षता सीएसआईआर-राष्ट्रीय विज्ञान संचार एवं सूचना केंद्र की निदेशक प्रो रंजना अग्रवाल ने की. राधा गुप्ता, पंकज प्रसून और मनुखभाई नारिया ने विज्ञान पर अपनी काव्यात्मक अभिव्यक्ति से दर्शकों का मन मोह लिया. विज्ञानिका का समापन एक संवादात्मक प्रश्नोत्तर सत्र से हुआ. डा नील सरोवर भावेश, विभा, डा पी जयमूर्ति, डा परमानंद बर्मन, डा दिनेश वेलिप, डा रजनीश गौर, प्रोफेसर मनीष के कश्यप और डा मनबेंद्र शर्मा ने बातचीत की.