पुणेः मातृभाषा को बढ़ावा देने और बच्चों की पहली भाषा में पढ़ने की आवश्यकताओं को पूरा करने के अपने उद्देश्य के तहत राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत ने पुणे के फर्ग्यूसन कॉलेज में एक तीन दिवसीय अनुवाद कार्यशाला का आयोजन किया. उद्घाटन समारोह में प्रमुख अतिथि के रूप में डेक्कन एजुकेशन सोसायटी पुणे के अध्यक्ष डॉ शरद कुंटे, सरहद के संस्थापक संजय नाहर, आकाशवाणी पुणे के अवकाश प्राप्त सहायक संचालक डॉ सुनील देवधर, राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के निदेशक युवराज मलिक, फर्ग्यूसन महाविद्यालय के प्रोफेसर आनंद काटीकर उपस्थित थे. डॉ कुंटे ने राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत द्वारा विभिन्न भारतीय भाषाओं में किए जाने वाले अनुवाद कार्य की सराहना करते हए कहा कि सभी भारतीय भाषाओं को राष्ट्रभाषा ही कहना उचित होगा. उन्होंने भारतीय भाषाओं के बीच के अंतर को और कम करने के लिए विनोबा भावे के विचार का अनुसरण करने पर बल दिया कि सभी भाषाओं के लेखन हेतु एक ही लिपि को स्वीकार करना चाहिए.

युवराज मलिक ने न्यास के कार्य, अनुवाद कार्यशाला के महत्त्व एवं उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए फर्ग्यूसन महाविद्यालय की ऐतिहासिक एवं गौरवशाली परंपरा की महत्ता को अधोरेखित किया. विशेष अतिथि संजय नाहर ने अपने मंतव्य में भगत सिंह, पाकिस्तान में लोकमान्य तिलक का पुतला और 2006 में पंजाब के घुमान में संपन्न मराठी साहित्य सम्मेलन से संबंधित यादों को ताजा किया. डॉ सुनील देवधर ने अनुवाद से संबंधित कुछ महत्त्वपूर्ण बातों को मजाकिया अंदाज में समझाते हुए श्रोताओं को हास्य रस का अनुभव दिलाया. उन्होंने काव्यानुवाद का उदाहरण भी दिया. समारोह का संचालन पंकज पाटिल ने किया तथा डॉ आनंद काटीकर ने आभार ज्ञापित किया. इस अवसर पर महाविद्यालय के प्रांगण में मराठी लेखकों के प्रतिमा की प्रदर्शनी भी लगाई गई. अलग-अलग भाषा लिपी में लिखी गई रंगोली ने सभी का ध्यान आकर्षित किया. इस अवसर पर राष्ट्रीय पुस्तक न्यास की मराठी भाषा समन्वयक निवेदिता मैदाने, पंजाबी भाषा समन्वयक नवजोत कौर, कोंकणी भाषा समन्वयक शिल्पा पटवारी, डेक्कन एजुकेशन सोसायटी के सचिव धनंजय कुलकर्णी, प्राजक्ता प्रधान, मिलिंद कांबले, डॉ प्राची साठे और अन्य साहित्यप्रेमी उपस्थित थे. इस कार्यशाला में 30 विभिन्न बाल समूहों के लिए लिखी गई पुस्तकों का अनुवाद किया गया.