नई दिल्ली: “धर्म शब्द नैतिकतापूर्ण, आधारभूत नियामक सिद्धांतों के लिए प्रयुक्त होता है. ‘धारणात् धर्म इत्याहु:, धर्मो धारयति प्रजा:‘ अर्थात जो सभी व्यवस्थाओं को धारण करता है यानी आधार देता है वह धर्म कहलाता है; धर्म ही प्रजाओं को आश्रय देता है.” राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने यह बात राष्ट्रीय जिला न्यायपालिका सम्मेलन के समापन समारोह को संबोधित करते हुए कही. उन्होंने कहा कि अपनी स्थापना के बाद के पिछले 75 वर्षों के दौरान भारत के उच्चतम न्यायालय ने विश्व के सबसे बड़े लोकतन्त्र की न्याय-व्यवस्था के सजग प्रहरी के रूप में अपना अमूल्य योगदान दिया है. उच्चतम न्यायालय ने भारत के न्याय-शास्त्र को बहुत सम्मानित स्थान दिलाया है. इसके लिए उच्चतम न्यायालय सहित भारतीय न्यायपालिका से जुड़े वर्तमान और अतीत के सभी लोगों के योगदान की मैं सराहना करती हूं. राष्ट्रपति ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के 75वें वर्ष के उपलक्ष्य में तैयार किए गए झंडे और बिल्ले का विमोचन करके मुझे बहुत प्रसन्नता हुई है. इनमें उच्चतम न्यायालय का ध्येय वाक्य ‘यतो धर्म: ततो जय:‘ अंकित है. महाभारत में इस काव्यांश का उल्लेख कई बार हुआ है. इसका भावार्थ है कि जहां धर्म है वहीं विजय है. राष्ट्रपति मुर्मु ने कहा कि यह कहा जा सकता है कि न्याय और अन्याय का निर्णय करने वाले सभी न्यायालय धर्म-क्षेत्र हैं. जिसकी तरफ धर्म अथवा न्याय हो उस पक्षकार की विजय सुनिश्चित कराना ही उच्चतम न्यायालय का ध्येय वाक्य है और इसीलिए, भारत की पूरी न्यायपालिका का आदर्श वाक्य भी है.
राष्ट्रपति मुर्मु ने कहा कि न्याय के प्रति आस्था और श्रद्धा का भाव हमारी परंपरा का हिस्सा रहा है. हिंदी के महानतम कथाकार मुंशी प्रेमचंद की एक कहानी ‘पंच-परमेश्वर‘, लगभग सभी भारतीय भाषाओं और अंग्रेज़ी में भी उपलब्ध है. उस कहानी में गांव के लोग जिस व्यक्ति को सरपंच बनाते हैं, उसके विचारों को मैं उद्धृत करना चाहूंगी. वह कहता है, “… मैं इस वक्त न्याय और धर्म के सर्वोच्च आसन पर बैठा हूं. मेरे मुंह से इस समय जो कुछ निकलेगा वह देव-वाणी के सदृश है- और देववाणी में मेरे मनोविकारों का कदापि समावेश न होना चाहिए. मुझे सत्य से जौ भर भी टलना उचित नहीं.” मुंशी प्रेमचंद कहना चाहते हैं कि न्यायाधीश को न्याय करते समय निष्पक्षता की उच्चतम क्षमता विकसित करनी चाहिए. न्यायपालिका से जुड़े सभी लोग महिलाओं के विषय में पूर्वाग्रहों से मुक्त विचार, व्यवहार और भाषा के आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करेंगे. राष्ट्रपति ने कहा कि हमारी न्यायपालिका के समक्ष ऐसी अनेक चुनौतियां हैं जिनके समाधान के लिए सभी हितधारकों को समन्वित प्रयास करना होगा. उदाहरण के लिए साक्ष्य और गवाहों से जुड़े मुद्दों पर न्यायपालिका, सरकार और पुलिस प्रशासन को मिल-जुलकर समाधान निकालना चाहिए. राष्ट्रपति ने कहा कि यह हमारे सामाजिक जीवन का एक दुखद पहलू है कि, कुछ मामलों में, साधन-सम्पन्न लोग अपराध करने के बाद भी निर्भीक और स्वच्छंद घूमते रहते हैं. जो लोग उनके अपराधों से पीड़ित होते हैं, वे डरे-सहमे रहते हैं, मानो उन्हीं बेचारों ने कोई अपराध कर दिया हो. महिला पीड़िताओं की स्थिति और भी खराब होती है क्योंकि प्रायः समाज के लोग भी उनका साथ नहीं देते हैं.