नर हो न निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम करो
जग में रह कर कुछ नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो.
स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की इस कविता को हममें से अधिकांश ने पढ़ा होगा. मैथिलीशरण गुप्त हिंदी कविता के शिरोमणि कवि हैं. भारत–भारती मैथिलीशरण गुप्त की प्रसिद्ध रचना है, जो राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन का घोषणापत्र सी बन गई थी. साल 1912 में लिखी यह रचना 1914 में प्रकाशित होते ही देश भर में छा गई. प्रभात फेरियों, राष्ट्रीय आंदोलनों, शिक्षा संस्थानों, प्रात:कालीन प्रार्थनाओं में 'भारत भारती' के पद गांव-गांव, नगर-नगर गाये जाने लगे. तीन खंडों में विभाजित इस काव्य ग्रंथ की एक-एक पंक्ति भारत के गौरव का बखान करने वाली थीं.
मानस भवन में आर्यजन जिसकी उतारें आरतीं-
भगवान् ! भारतवर्ष में गूंजे हमारी भारती।
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने केवल राष्ट्रवाद को ही नहीं बल्कि स्त्री मन को भी अपनी रचना की केंद्र बनाया. वह स्त्री के कोमल भावों को परोसने वाले संभवतः अपने दौर के सबसे सशक्त कवि हैं. कहते हैं रबीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा साहित्य में नारी उपेक्षा पर बांग्ला भाषा में लिखे लेख 'काव्येर उपेक्षित नार्या' को एक चुनौति की तरह लेते हुए उन्होंने अपने खंड, प्रबंध और महाकाव्यों उपेक्षित, किन्तु महिमामयी नारियों की व्यथा–कथा को चित्रित किया और साथ ही उसमें आधुनिक चेतना के आयाम भी जोड़े.
गुप्त के अन्य प्रमुख काव्य ग्रंथ हैं- जयद्रथ वध (1910), पंचवटी (1925), झंकार (1929), साकेत (1931), यशोधरा (1932), द्वापर (1936), जयभारत (1952) तथा विष्णुप्रिया (1957). साकेत और जयभारत, दोनों महाकाव्य हैं. साकेत रामकथा पर आधारित है, किन्तु इसके केंद्र में लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला हैं. साकेत में कवि ने उर्मिला और लक्ष्मण के दाम्पत्य जीवन के हृदयस्पर्शी प्रसंग तथा उर्मिला की विरह दशा का अत्यन्त मार्मिक चित्रण किया है, साथ ही कैकेयी के पश्चात्ताप को दर्शाकर उनके चरित्र का मनोवैज्ञानिक एवं उज्ज्वल पक्ष प्रस्तुत किया है. यशोधरा में गौतम बुद्ध की मानिनी पत्नी यशोधरा केंद्र में हैं. यशोधरा की मनःस्थितियों का मार्मिक अंकन इस काव्य में हुआ है. विष्णुप्रिया में चैतन्य महाप्रभु की पत्नी केंद्र में हैं.
विविध धर्मों, संप्रदायों, मत-मतांतरों और संस्कृतियों के प्रति सहिष्णुता व समन्वय की भावना राष्ट्रकवि मैथिलीशरण के काव्य का वैशिष्ट्य है. पंचवटी काव्य में सहज वन्य-जीवन के प्रति गहरा अनुराग और प्रकृति के मनोहारी चित्र तो हैं ही, नहुष पौराणिक कथा के आधार के माध्यम से कर्म और आशा का संदेश है. झंकार वैष्णव भावना से ओतप्रोत गीतिकाव्य है, तो गुरुकुल और काबा–कर्बला में कवि के उदार धर्म–दर्शन का प्रमाण मिलता है. खड़ी बोली के स्वरूप निर्धारण और विकास में मैथिलीशरण गुप्त का अन्यतम योगदान है. मैथिलीशरण गुप्त का जन्म 3 अगस्त, 1886 एवं निधन 12 दिसंबर, 1964 को हुआ पर साल 1909 में पहली कृति 'रंग में भंग' से लेकर आज तक भारतीय जनमानस और साहित्य को अनुप्राणित करने वाले इस साहित्य मनीषी राष्ट्रकवि को जागरण हिंदी की ओर से शत-शत नमन!