गुड़गांवः राजकपूर हिंदी फिल्मों के सबसे बड़े शो मैन यों ही नहीं थे. उनकी फिल्में अपनी संवेदनशील कहानी की मार्फत समाज से संवाद तो करती ही थीं, उनका संगीत आज भी युवा दिलों की धड़कनों के साथ ही उनके पैरों को भी थिरकाता है. इस मामले में समूचे कपूर खानदान पर एक से बढ़कर एक फिल्मी गाने फिल्माए गये. गुड़गांव के रिचमंड क्लब में राजकपूर, शम्मीकपूर, शशिकपूर की फिल्मों के गीतों पर केंद्रित एक आयोजन किया गया, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में पृथ्वीराज कपूर की 90 वर्षीय बहन शांता कपूर ने शिरकत की. समूचा माहौल जब रोमांटिक और तड़कभड़क वाले गीतों से गुलजार था, तब गीतकार लक्ष्मी शंकर बाजपेयी ने आग फिल्म का गीत 'ज़िंदा हूं इस तरह कि ग़में ज़िंदगी नहीं, जलता हुआ दीया हूं मगर… सुनाया.
बाजपेयी इस आयोजन के महत्त्वपूर्ण गायकों में थे, पर जब उन्होंने दूसरे गायकों के गीत सुने तो अपने को और अपने चुनाव को कोसने लगे कि उन्होंने इतना दर्द भरा और धीमा गाना क्यों चुना. उन्होंने अपने इस अनुभव को सोशल मीडिया पर शेयर करते हुए लिखा कि इस गाने के चुनाव के तीन कारण थे, पहला, मैं इसे पहले भी स्टेज पर गा चुका था, दूसरा यह ग़ज़ल है, और तीसरा यह बहुत दर्द भरा है… हालांकि वह अपने चयन पर और भी दुखी होते कि सोलो राउंड के समापन के बाद शांता कपूर ने मुलाकात में बताया कि सबने अच्छा गाया, लेकिन मुझे आपका गाना सबसे खास लगा..क्योंकि ये राज कपूर को भी बहुत पसंद था.. मुझे भी बहुत पसंद है.. और अब इतने पुराने गाने अब सुनने को कहां मिलते हैं..!