प्रभात कुमार पाठकजागरण गोरखपुर: ‘तुमने जहां प्रेम लिखा हैवहां सड़क लिख दो…मुझे कुछ फर्क नहीं पड़ताहमारे युग का मुहावरा है’। युवा अपनी चाहत का साहित्य ढूंढ़ लेता है। संचार क्रांति के दौर में आज का युवा अगले दिन के पत्रिका की प्रतीक्षा नहीं करता वह इंटरनेट मीडिया पर तुरंत अपनी रुचियों का साहित्य प्राप्त कर लेता है। आज का होरी आइफोन मांगता है। लगातार पुस्तकों के प्रकाशन में बढ़ोतरी में आज के युवा साहित्य प्रेमियों का महत्वपूर्ण योगदान है। रोजी-रोटी की तलाश और काम के बोझ के बावजूद युवा साहित्य से काफी दूर नहीं जा सका है। बदलते परिवेश में साहित्य का स्वरूप नहीं बदला हैजो इंटरनेट मीडिया पर स्पष्ट दिखता है। ये बातें शुक्रवार को योगिराज बाबा गंभीरनाथ प्रेक्षागृह में आयोजित दैनिक जागरण संवादी के द्वितीय सत्र ‘युवाओं की साहित्यिक पसंद’ विषय पर पैनलिस्टों के बीच हुए संवाद में उभरकर सामने आई। उनके एक-एक शब्द पर युवा जहां गंभीरता से मंथन करते नजर आएं वहीं तालियां बजाकर उनके संवाद का समर्थन भी किया। सत्र के संचालक भारतेंदु नाट्य अकादमी के सदस्य मानवेंद्र त्रिपाठी ने विषय को रखते हुए जैसे ही पहला प्रश्न पूछा आज का युवा साहित्य से क्यों दूर हो गया हैजवाब देते हुए उपान्यासकार नवीन चौधरी ने कहा कि यह सच है कि युवा साहित्य से दूर हो गया है पर पूरी तरह नहीं। पिछले कुछ दिनों में हिंदी का काफी विकास हुआ है। वर्ष 2003 से जहां 70 प्रतिशत बाजार करिकुलम का हो गया है वहीं 30 प्रतिशत शेष ट्रेड की किताबों का है। समय बदलने के साथ लोगों का टेस्ट भी बदला है। पिछले कुछ वर्षों में साहित्य के अंदर नए लेखक आए हैं। आज साहित्य के अंदर होरी बदल चुका है। होरी के हाथ में आइफोन आ चुका है। चर्चा को आगे बढ़ाते हुए साहित्यकार व गोवि में हिंदी विभाग के सहायक आचार्य डा. अभिषेक कुमार शुक्ला ने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि आज का युवा साहित्य से दूर नहीं है बल्कि उसका स्वरूप बदला है। पत्रिका की जगह उसके हाथ में मोबाइल फोन है और वह अपनी रुचि के अनुसार सामग्री स्वयं ढूढ़ लेता है। मेरी समझ से यह सवाल प्रासंगिक नहीं है। आज का दौर एआइ (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) का है। बहुत तेजी से दुनिया बदल रही है। ऐसे में अब साहित्य इस बदली हुई डिवाइस पर शिफ्ट हो रहा है। युवा रील्स बनाने की कवायद कर रहा है और इसी के जरिये अपने को अभिव्यक्त कर रहा है। अगला प्रश्न था कि युवा साहित्य से दूर हो रहा हैतभी तो वह दिनकर को भूल रहा हैइसके उत्तर में गोरखपुर विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग की सहायक आचार्य डा. अपर्णा पांडेय ने कहा कि युवा साहित्य से कट नहीं रहे हैं बल्कि इसमें रम रहे हैं। यह मैं पूरे प्रमाण के साथ कह रहीं हूं। युवाओं को साहित्य में रमाने की जो कोशिश होनी चाहिए नहीं हो रही है। उन्हें जो दृष्टि देनी चाहिए हम नहीं दे रहे हैं। यदि हम अपनी कक्षाओं में बच्चों को कविता पाठकहानी व नाट्य विधाएं सिखाएं तो मुझे नहीं लगता कि उन्हें साहित्य के लिए रील्स या वेब सीरीज की जरूरत पड़ेगी। साहित्य में डूबना होता है। समझना होता है। साहित्य काफी समृद्ध है और इसमें सब कुछ है। यदि हमें लग रहा है कि युवा साहित्य से कट रहा है तो उन युवाओं को पकड़िए। उनका समूह बनाइए और उन्हें बताइए कि कैसे साहित्य में डूबना होता हैमहसूस कीजिए। पैनलिस्टों ने शांत की युवा श्रोताओं की जिज्ञासा: बात युवाओं की साहित्यिक पसंद पर होगी तो उनकी तरफ से सवाल भी आना लाजमी था। संवाद के क्रम में पहला प्रश्न सौरभ ने किया कि समाज में पढ़ने की प्रवृत्ति घट रहीं तो वहीं डा. गुंजन पांडेय ने पूछा की क्या साहित्य को करियर एवं रोजगार से नहीं जोड़ा जा सकताताकि युवाओं की इसमें रुचि बढ़े। इसी तरह प्रवीण तिवारी ने सवाल किया कि इस समय साहित्यिक किताबें सिर्फ बिकने के लिए लिखी जा रही है तो वहीं संदीप ने भाषा के बारे में सवाल पूछा। इन सभी प्रश्नों का एक-एक कर जवाब देकर पैनलिस्टों ने उनकी जिज्ञासा शांत की।