गाजियाबादः सावन, यानी आराधना मास. ऐसे में सूरज की तपिश व वर्षा की फुहारों के बीच गर्मी और कुछ नमी लिए समशीतोष्ण जलवायु मन में भक्ति तथा उमंग के भाव-प्रवाह को रोक नहीं पा रही है. इसी तथ्य के मद्देनजर 'माटी की सुगंध' समूह ने एक कवि सम्मेलन का आयोजन किया, जिसमें शामिल कवियों ने मिली-जुली रचनाएं पढ़ीं. कवि सम्मेलन की अध्यक्षता गीतकार डॉ जयसिंह आर्य ने की. मुख्य अतिथि केसर कमल शर्मा, विशिष्ट अतिथि विजय प्रेमी तथा अनूपिन्दर सिंह अनूप थे. संचालन संजय जैन ने किया. सम्मेलन का प्रारम्भ मोनिका शर्मा की सुमधुर प्रस्तुति सरस्वती वंदना से हुआ. डॉ जयसिंह आर्य के काव्यपाठ की पंक्तियां थीं, “यादों के घरौंदे हैं सुनसान से जंगल हैं, बिजली भी दीवानी है, सावन का महीना है.“
कवि सम्मेलन में केसर कमल शर्मा की प्रस्तुति थी, “घुमड़-घु्मड़ कर आये बदरा ले सावन की फुहार, धरती झूमी, अम्बर झूमा, आंगन लिया बुहार.” अनूपिन्दर सिंह अनूप की रचना थी, “टपके घर की छत अगर बरसात में, थे फिर कोई जाये किधर बरसात में.” डॉ विजय प्रेमी ने कहा,
“कैसे भी हों ग़म सदा तू मुस्कुराना सीख ले. ज़िन्दगी में तू किसी के काम आना सीख ले.” इनके अतिरिक्त नरेन्द्र शर्मा खामोश, मोनिका शर्मा, नरेश लाभ, हरगोविन्द झाम्ब कमल, रामनिवास भारद्वाज, विनोद पाराशर, प्रीतम सिंह प्रीतम, बृजेश सैनी, डॉ पंकज वासिनी और सुषमा सवेरा ने भी अपनी-अपनी कविताएं पढ़ीं.