पूर्णिया: स्थानीय सूर्य नारायण सिंह यादव महाविद्यालय के सभा सदन में कथा सम्राट ‘मुंशी प्रेमचंद की 144वीं जयंती‘ के अवसर पर प्रगतिशील लेखक संघ की पूर्णिया इकाई ने एक परिचर्चा आयोजित की. परिचर्चा का विषय था, ‘प्रेमचंद के साहित्य में किसान पात्रों की भूमिकाः ‘गांव, खेती और किसानों के बीच प्रेमचंद का कृतित्व और व्यक्तित्व. इस अवसर पर एक कविता-गोष्ठी भी आयोजित हुई. इस अवसर पर लेखिका, समाज सेविका और संघ राष्ट्रसेविका समिति की जिला संयोजिका स्नेहा किरण ने बताया कि कोसी की माटी कई महान साहित्यकारों की जननी रही है. इसलिए वे भी खुद को कहीं न कहीं गौरवान्वित पाती हैं कि इस आबोहवा में उन्हें भी रहने का सौभाग्य मिला. उन्होंने कहा कि भक्ति-धर्म पर आधारित कथाओं के साथ राजा-महाराजाओं की दंतकथाओं, भूतप्रेत, तिलिस्म, अय्यारी, विक्रम-बेताल व प्रेमकथाओं से अलग हटकर उस समय मुंशी प्रेमचंद ने आम आवाम की समस्या को ही अपने लेखन का मूल विषय बनाया और इसे आम-जन के दु:ख-दर्द और सामाजिक सरोकारों से जोड़ा.
अध्यक्षीय वक्तव्य में सीमांचल के ख्याति प्राप्त साहित्यकार देवनारायण पासवान देव ने किसान पर केंद्रित प्रेमचन्द की कहानियों में वर्णित कथ्यों पर विश्लेषणात्मक विवेचना प्रस्तुत करते हुए कहा कि प्रेमचंद की विभिन्न कथाओं, उपन्यासों, कहानियों व साहित्यिक विचारों का मनन करें तो हम पाते हैं कि उनकी सभी रचनाओं में आंचलिकता की मिट्टी की सोंधी महक के संग ही उन मौलिक विषयों, विशिष्ट भारतीय लक्षणों, जीवन-शैली को उभारने वाली समस्याओं व जीवंत पात्रों पर जोर दिया गया है, जिसे अन्य लेखकों ने अनदेखा किया था. नूतन आनन्द ने कहा कि खेती में लाभकारी मूल्य के लिए हम किसानों के साथ है और इसलिए ऐसे विषय पर यह कार्यक्रम आयोजित है. कार्यक्रम का आगाज मुंशी प्रेमचंद की छवि पर पुष्पांजलि से हुआ. इस अवसर पर प्रो घनश्याम राय, धीरेन्द्र कुमार धीरज, डा मो कमाल, प्रो इन्दुशेखर, प्रो राम नन्दन यादव, किशोर कुमार यादव आदि उपस्थित रहे.