पटनाः मिथिला से शास्त्रार्थ परंपरा समाप्त हो रही है. मिथिला कभी धन के लिए नहीं जानी गई. यह हमेशा विद्या, वैभव, उन्नत साहित्य-संस्कृति के लिए जानी जाती है. यहां की साहित्य, संस्कृति, धरोहर सुसम्पन्न है. मैथिली में एक से बढ़कर एक पुस्तक लिखी जा रही है. यद्यपि पुस्तकों के क्रेता नहीं हैं किंतु लेखक स्वान्त: सुखाय लेखन करते हैं. ये बातें बिहार सरकार के शिक्षा विभाग के विशेष सचिव सतीश चंद्र झा ने विद्यापति भवन स्थित भारती मंडप सभागार में मैथिली अकादमी द्वारा आयोजित सुशील स्मृति व्याख्यानमाला का उद्घाटन करते हुए कहीं. विषय था, 'मिथिलाक बदलैत समाज आ साहित्य. मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए लेखक-पत्रकार विकास कुमार झा ने कहा कि वर्तमान संदर्भ में मिथिला के समाज और साहित्य में विकास की अपार संभावनाएं हैं. इसके लिए मिथिला की वर्तमान सामाजिक संरचना को ध्यान में रखकर परिवेश के अनुकूल सामाजिक सद्भाव और समन्वय का वातावरण बनाना होगा. वैश्वीकरण के संदर्भ में हमें मिथिला के बौद्धिक, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक विकास का विकल्प ढूंढना होगा. संविधान की अष्टम अनुसूची में राष्ट्रीय भाषा का दर्जा प्राप्त होने से मैथिली साहित्य के क्षेत्र में पर्याप्त संभावनाएं विकसित हुई हैं.
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रो. वासुकी नाथ झा ने कहा कि मिथिला में हर विधा में राष्ट्रीय स्तर के विद्वान आज भी हैं, किन्तु मिथिला के समाज और साहित्य की जो पहचान होनी चाहिए उसके लिए समेकित चिंतन और प्रयास की आवश्यकता है. विशिष्ट अतिथि इतिहासविद् डा. रत्नेश्वर मिश्र ने कार्यक्रम में लोकार्पित दो पुस्तकों- गोविंद झा द्वारा संपादित 'विद्यापति गीतावली' और सुधांशु शेखर चौधरी रचित पुस्तक 'जिनगीक बाट' पर प्रकाश डाला. इससे पूर्व अकादमी के अध्यक्ष सह निदेशक दिनेश चंद्र झा द्वारा पुष्पगुच्छ, पाग, दुपट्टा और स्मृति चिह्न देकर अतिथियों का स्वागत किया गया. स्वागत भाषण में उन्होंने कहा कि यह भाषणमाला मिथिला के बदलते हुए समाज और साहित्य पर केंद्रित है. मिथिला का समाज सदा से साहित्यिक-सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्ध भू-भाग रहा है. मैथिल समाज शैक्षणिक और बौद्धिक दृष्टि से समृद्ध है. कार्यक्रम की शुरुआत मैथिली की चर्चित गायिका रंजना झा द्वारा गाए जय-जय भैरवी असुर भयावनी और चानन भेल बिसम सरि रे.. से हुई. इस मौके पर उन्हें सम्मानित भी किया गया. कार्यक्रम का संचालन चेतना समिति के सचिव उमेश मिश्र और धन्यवाद ज्ञापन गंगा देवी कॉलेज की प्राध्यापिका डा. रंजना ने किया. इस अवसर पर विवेकानंद झा, कथाकार अशोक, इन्द्रकांत झा, योगेन्द्र नारायण मल्लिक, रमानन्द झा रमण, अमरनाथ मिश्र, प्रेमलता मिश्र प्रेम सहित अन्य विद्वान, साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी उपस्थित थे.