भोपालः माधवराव सप्रे संग्रहालय के 35वें स्थापना दिवस के मौके पर 'आंचलिक अखबारों की राष्ट्रीय पत्रकारिता' विषय पर गोष्ठी, प्रदर्शनी व सम्मान समारोह का आयोजन किया गया. प्रदर्शनी में स्वराज अखबार के बलिदानी संपादकों के चित्र भी प्रदर्शित किया गया था. इस अवसर पर आंचलिक पत्रकारिता पर विश्लेषण परक ग्रंथ लिखने वाले हरीश पाठक ने कहा कि बड़े अखबारों को छोटे शहरों के पत्रकार सामग्री उपलब्ध कराते हैं. राजस्थान का रूपकुंवर सती कांड और बिहार के पशुपालन घोटाले को पहले वहां के छोटे अखबारों ने ही छापा था, जिसे बाद में राष्ट्रीय मीडिया ने उठाया. वरिष्ठ पत्रकार उमेश त्रिवेदी ने कहा कि आंचलिक पत्रकारिता जोखिम भरी है. यह समाज को बदल सकती है. आंचलिक पत्रकारिता यथार्थ को सामने लाती है और महानगरीय पत्रकारिता ग्लैमर को. राजेश बादल का कहना था कि आंचलिक पत्रकार स्थानीय समस्याओं और चुनौतियों को झेलते हुए सच सामने लाता है. परिचर्चा की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ पत्रकार राजेन्द्र शर्मा ने कहा कि हिंदी में अंग्रेजी की घुसपैठ ठीक नहीं. इससे पत्रकारिता का सम्मान कम होता है.
कार्यक्रम में जनसंपर्क मंत्री पीसी शर्मा और सप्रे परिवार की चौथी पीढ़ी के सदस्य सुरभि साठे मुख्य रूप से उपस्थित हुए. इस दौरान खोजी पत्रकारिता के लिए वरिष्ठ पत्रकार श्यामलाल यादव को माधवराव सप्रे पुरस्कार और राष्ट्रीय पुस्तक न्यास से जुड़े पंकज चतुर्वेदी को महेश गुप्ता सृजन सम्मान से सम्मानित किया गया. इस अवसर पर माधवराव सप्रे के पौत्र डॉ. अशोक सप्रे ने कहा कि यह संस्थान पत्रकारिता की आने वाली पीढ़ियों को राह दिखाता रहेगा. श्यामलाल यादव ने कहा कि पत्रकारिता आज पर निर्भर है. सरकार ने जो सूचना का अधिकार दिया है, वह पत्रकारों के लिए कारगर है. इसी दम पर मैं पत्रकारिता में बड़ा काम कर पाया जिसका सही मूल्यांकन यह पुरस्कार है. इस अवसर पर दीर्घा में संजोए गए चित्रों में शांतिनारायण, अमीर चंद्र बंबवाल, लद्दाराम, नंदगोपाल, होतीलाल वर्मा, बाबू रामहरि के चित्र शामिल हैं. समारोह में प्रतीक स्वरूप स्वराज के पहले संपादक शान्ति नारायण भटनागर के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की गई. डॉ राकेश पाठक ने संचालन किया और विजय दत्त श्रीधर, राकेश अग्निहोत्री, मंगला अनुज, नितेश परमार, रमाकांत और पुष्पेन्द्र पाल सिंह जैसे लोग उपस्थित रहे.