भोपाल: ‘साहित्य के विभिन्न रूप हमारी जिंदगी की पगडंडियां हैं. वे हमें धीरे-धीरे जीने का रास्ता देती हैं. राहगीर से घुलने मिलने का जरिया जरिया बनाती हैं. शोर रहित होकर साहित्य का सार हमारे अंदर मनुष्य होने का भरोसा पैदा करता है. ये पुस्तकें भरोसे के इस सृजन को सामने लाती हैं.‘ कथाकार शशांक ने यह बात ‘त्रिविधा 3′ में की अध्यक्षता करते हुए कही. मध्य प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन भोपाल इकाई के अध्यक्ष भवेश दिलशाद ने बताया कि रचनात्मक सिलसिले में तीन चुनिंदा किताबों पर चर्चा का आयोजन किया गया. इसके अंतर्गत उर्मिला शिरीष की ‘प्रतिनिधि कहानियां‘, शेफाली शर्मा के कविता संग्रह ‘सॉरी आर्यभट्ट‘ और राजेश बादल की संपादित कृति ‘सदी का संपादक राजेंद्र माथुर‘ पर क्रमश: मनीष वैद्य, डा आरती और सुधीर सक्सेना ने अपने विचार रखे. कार्यक्रम का संचालन सलीम सरमद ने किया. कार्यक्रम में तीनों किताबों के लेखक न केवल उपस्थित थे बल्कि उन्होंने भी किताब पर अपने विचार संक्षेप में रखे. इस चर्चा के दौरान वक्ताओं ने तीनों रचनाकारों की कृति पर क्रमशः विचार रखे, जिसमें यह बात सामने आयी कि हम जिस समय और समाज में रह रहे हैं, वहां तमाम दावों तथा ऊपर-ऊपर दिखते कुछ सतही बदलावों के बावजूद स्त्रियों की स्थिति बदतर ही कही जा सकती है.
वक्ताओं ने कहा कि उर्मिला शिरीष स्त्रियों के प्रति समाज के रवैये, उन पर पितृसत्तात्मक समाज के असर, उनकी विडंबनाओं, पीड़ाओं और उनके शाश्वत दुखों की पड़ताल लंबे समय से करती आ रही हैं. लेकिन उनकी कहानियां सिर्फ स्त्री की नहीं हैं, उनमें हमारे आसपास का पूरा समाज अपनी समग्रता में हमारे आज समय में नजर आता है. इस तरह वे अलग ढंग के स्त्री विमर्श का वितान रचती हैं, बिना किसी नारे और झंडाबरदारी के. इसी तरह शेफाली की कविताओं की केंद्रीय विषय-वस्तु बच्चे हैं. घर-परिवार से शुरू होकर समाज, देश और दुनिया भर के बच्चे. जो कविताएं स्त्रियों के लिए हैं वहां भी बच्चे हैं. यहां तक कि जो कविताएं अपने वितान में राजनीतिक कविताएं लगती हैं या तत्कालिक घटनाक्रम के अनुभूति की कविताएं हैं, वहां भी बच्चे हैं. किसी कवि की संवेदना का इससे ज्यादा कोमल और विस्तृत रूप और क्या हो सकता है कि वह अपने लिए नहीं, अपनी पीढ़ी के लिए नहीं बल्कि आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए चिंतित है, परेशान है, उनके लिए रचनारत है. राजेश बादल द्वारा संपादित पुस्तक ‘सदी का संपादक राजेंद्र माथुर‘ एक अमूल्य दस्तावेज है कि यह ना सिर्फ माथुर के व्यक्तित्व की परतों को उद्घाटित करती है बल्कि उनके उस कृतित्व को भी सामने लाती है जो उनके उत्कृष्ट संपादन कौशल और तटस्थ व निर्भीक अंतर्दृष्टि का भी परिचय देती है. किताब में संकलित ‘कश्मीर; एक मंत्र पाठ‘ इतिहास और पत्रकारिता के अध्येताओं के लिए बहुत मूल्यवान और संग्रहणीय संदर्भ है.