भोपालः किसी जमाने में परधान जाति के लोग जीवनयापन के लिए बड़ा देव से सम्बंधित कथाओं एवं अन्य मिथकों को गाया करते थे, जिसके बदले उन्हें समाज से पर्याप्त अनाज और धन मिल जाया करता था. अनेक गोंड परधान गायन से अलग हो कर चित्रकारी करने लगे. अपने जातीय मिथकों एवं अन्य कथाओं को वे अपनी समझ में चित्रित करने लगे. अब मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय के 'लिखन्दरा दीर्घा' में गोंड समुदाय के चित्रकार मंगरू उइके के चित्रों की प्रदर्शनी 'शलाका 20' के तहत प्रदर्शित की गई है. लिखन्दरा पुस्तकालय की प्रदर्शनी दीर्घा में यह चित्रकला प्रदर्शनी 30 दिसंबर तक जारी रहेगी. मंगरू उइके, गोंड की उपजाति परधान के युवा चित्रकार हैं. उनका जन्म साल 1977 में मध्यप्रदेश के डिंडोरी के ग्राम पाटनगढ़ में हुआ.  
चित्रकार मंगरू ने बचपन की स्मृति एवं गोंड मिथकों को कागज़ पर उकेरने का कार्य किया है.  इस चित्रकला प्रदर्शनी में प्रदर्शित चित्र विक्रय हेतु भी उपलब्ध हैं जिन्हें चित्रकार से क्रय किया जा सकता है. कला दीर्घा 'लिखन्दरा' में ऐसे ही आयोजन होते हैं. लिखन्दरा एक ओर जहां लिखने के अर्थ को व्यक्त करता है, वहीं यह शब्द बहुत ज्यादा लिखने वाले के लिए भी प्रयुक्त किया जाता है. मध्यप्रदेश की सबसे कलाप्रिय जनजाति 'भील' के अनुष्ठानिक कथाचित्र 'पिठौरा' को चित्रांकित करने वाले कलाकार को भी 'लिखन्दरा' कहा जाता हैं. इसीलिए जनजातीय संग्रहालय की एक दीर्घा को चित्र एवं शब्द के समेकित अभिव्यक्ति केन्द्र के रूप में कल्पित किया गया है. दीर्घा में जहां पारम्परिक चित्रों का नियमित प्रदर्शन होता है वहीं जनजातीय और लोक कला संस्कृति तथा परम्परा विषयक पुस्तकालय भी संचालित है.