नई दिल्ली: “‘शून्यता‘ की गहन बौद्ध अवधारणा सभी दार्शनिक शाखाओं का केंद्र है, जिसे कुछ हद तक शून्यता के पर्याय के रूप में गलत समझा जाता है. फिर भी यह आपके अस्तित्व को एक साथ लाने वाली एक सुसंगत अवधारणा है जो मानवता को एकजुट करती है, जो वैश्विक मंच पर भू-राजनीतिक संकट की वर्तमान स्थिति में आवश्यक है.” केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने राजधानी स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में ‘शून्यता‘ नामक विशेष प्रदर्शनी का उद्घाटन करते हुए यह बात कही. कार्यक्रम में राष्ट्रीय संग्रहालय के महानिदेशक डा बीआर मणि और गणमान्य व्यक्तियों, राजनयिकों, विशेषज्ञों, शोधकर्ताओं, कलाकारों और संग्रहालय पेशेवरों की एक बड़ी सभा ने भाग लिया. इस अवसर शेखावत ने इस बात पर जोर दिया कि भू-राजनीतिक संकट का समाधान केवल भगवान बुद्ध द्वारा प्रचारित धम्म के सिद्धांतों का पालन करके ही किया जा सकता है. डा बीआर मणि ने यह भी बताया कि दर्शन और कला में शून्यता को निराकारता के दृश्य के भीतर देखा और सराहा जा सकता है, जो बुद्ध के पवित्र अवशेषों में भी प्रकट होता है. यह प्रदर्शनी कवि, कलाकार और राजनयिक अभय के द्वारा संचालित एक सहयोगात्मक प्रयास है. वह इसके क्यूरेटर के रूप में कार्य करते हैं. उन्होंने राष्ट्रीय संग्रहालय की क्यूरिटोरियल टीम के साथ मिलकर काम किया, जिसका नेतृत्व डा बीआर मणि करते हैं, जो एक प्रसिद्ध पुरातत्वविद् और बौद्ध कला और दर्शन के विशेषज्ञ हैं.
‘शून्यता‘ नामक यह प्रदर्शनी प्रारंभिक भारतीय और समकालीन कला के माध्यम से इस गहन अवधारणा को प्रदर्शित करके प्रारंभिक बौद्ध आधारभूत ग्रंथ, प्रज्ञापारमिता सूत्र में प्रस्तुत ‘शून्यता: शून्यता‘ के सार को प्रभावी ढंग से संप्रेषित करती है. प्रदर्शनी में अभय द्वारा चित्रों का एक जीवंत संग्रह और भारतीय राष्ट्रीय संग्रहालय की उत्कृष्ट कृतियों की एक शृंखला शामिल रही, जिसमें भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेष मुख्य आकर्षण हैं. थीम हृदय सूत्र में व्यक्त विचार पर केंद्रित है: ‘शून्यता ही रूप है; रूप ही शून्यता है,’ जिसे कलाकृतियों के माध्यम से अच्छी तरह से व्यक्त किया गया है. कलाकृतियां और पेंटिंग शून्यता के दृश्य के रूप में काम करती हैं. अपनी कलाकृतियों में अभय के का मानना है कि एक निश्चित, अंतर्निहित आत्म के विचार से चिपके रहना और क्षणभंगुर अनुभवों को स्थायी मानना दुख की जड़ है. दुख और जन्म-मृत्यु के अंतहीन चक्र से मुक्त होने के लिए शून्यता की अवधारणा को समझना आवश्यक है, जिसे संसार के रूप में जाना जाता है. सभी चीजों की शून्यता को पहचानकर, व्यक्ति खुद को इन गलत धारणाओं से मुक्त कर सकता है और आत्मज्ञान की ओर बढ़ सकता है. राष्ट्रीय संग्रहालय के संग्रह की कलाकृतियों में प्रज्ञापारमिता प्रवचन पर केंद्रित मूर्तियां और पेंटिंग शामिल हैं. इस प्रदर्शनी में सबसे पुरानी वस्तुओं में से एक आंध्र प्रदेश के नागार्जुनकोंडा से पत्थर पर नक्काशीदार बुद्धपद है, जो सातवाहन राजवंश के दौरान दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व का है. संग्रह में पाल काल की पत्थर की मूर्तियां भी शामिल हैं, जो 8वीं से 12वीं शताब्दी ईसा पूर्व तक फैली हुई हैं. ये मूर्तियां महत्त्वपूर्ण विषयों को दर्शाती हैं, जिनमें बुद्ध के जीवन की आठ महान घटनाएं ‘अष्टमहाप्रतिहार्य‘, भक्तों द्वारा प्रज्ञापारमिता सूत्र और वज्रसत्व की पूजा, और पारलौकिक बुद्ध ‘पंचतथगत‘ और आठ महान बोधिसत्व ‘अष्टमहाबोधिसत्व‘ को दर्शाने वाले पैनल, विभिन्न कांस्य चिह्नों और बौद्ध अनुष्ठान उपकरणों के साथ शामिल हैं.