नई दिल्ली: राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत के सभागार में ‘वर्तमान परिवेश में हिंदी की प्रासंगिकता‘ विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया. कार्यक्रम में हिंदी लेखक महेश दर्पण ने वर्तमान समय में हिंदी की प्रासंगिकता पर विचार व्यक्त किए. उन्होंने राजभाषा के महत्त्व को समझाते हुए कहा, ”भाषा हमारे जीवन की चेतना को जगाती है और वह शक्ति हिंदी में है. हिंदी को यह शक्ति इसलिए मिली क्योंकि उसमें विचारों के साथ संबंध बनाने की ताकत है. हम इसे राष्ट्र को एकता के सूत्र में पिरोने वाली भाषा के रूप में याद रखते हैं, क्योंकि हम जानते हैं कि हिंदी में अनुवाद होने के बाद एक लेखक पहले राष्ट्रीय होता है और फिर वह अंतर्राष्ट्रीय बन जाता है.”
दर्पण ने स्वाधीनता आंदोलन में हिंदी की शक्ति पर भी अपने विचार रखे और कहा कि, ”उस दौरान हिंदी को ही यह शक्ति दी गई थी कि वह अपना स्वतंत्र व्यक्तित्व बनाए और लोगों को यह बताए कि कैसे हम अपने समाज को जिता सकते हैं.” उन्होंने आगे कहा कि हिंदी की सबसे बड़ी शक्ति उसका लचीलापन है, वह हमें नम्रता से बोलना सिखाती है. आज 140 से अधिक देश है जहां हिंदीसेवियों की कतारें लगी हैं क्योंकि आज भारत से हर देश समर्थन चाहता है और यहां सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा हिंदी है. हिंदी को अपनाने के लिए अंग्रेजी का त्याग जरूरी नहीं है बल्कि उसके साथ दोस्ताना व्यवहार करके आप अपनी भाषा का विकास कर सकते हैं.