नई दिल्ली: “हिंदी कभी दूषित नहीं हो सकती क्योंकि यह गंगा की तरह है और सभी को समाहित करने के बाद भी यह पवित्र ही रहेगी.” यह बात केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने राजधानी में राजभाषा हीरक जयंती समारोह और चतुर्थ अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन को संबोधित करते हुए कही. शाह ने कहा कि हिंदी और स्थानीय भाषाओं के बीच कभी स्पर्धा नहीं हो सकती क्योंकि हिंदी सभी स्थानीय भाषाओं की सखी है. उन्होंने कहा कि हिंदी और स्थानीय भाषाएं एक दूसरे की पूरक हैं और इसीलिए भारतीय भाषा अनुभाग के माध्यम से हिंदी और सभी स्थानीय भाषाओं के बीच संबंध को और मजबूत किया जाएगा. उन्होंने कहा कि भारतीय भाषा अनुभाग हिंदी के किसी भी लेख, भाषण या पत्र का भावानुवाद देश की सभी भाषाओं में करेगा. इसी प्रकार देश की सभी भाषाओं के साहित्य, लेख और भाषणों का अनुवाद हिंदी में होगा, जो समय की जरूरत है. केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि जो स्वराज, स्वधर्म और स्वभाषा को समाहित नहीं करता वो अपनी आने वाली पीढ़ियों को गुलामी से मुक्त नहीं कर सकता. उन्होंने कहा कि स्वराज की व्याख्या में ही स्वभाषा समाहित है. उन्होंने कहा कि जो देश और जनता अपनी भाषाओं की रक्षा नहीं कर सकते वो अपने इतिहास, साहित्य तथा संस्कार से कट जाते हैं और उनकी आने वाली पीढ़ियां गुलामी की मानसिकता के साथ आगे बढ़ती हैं. शाह ने कहा कि ये बहुत जरूरी है कि आजादी के 75 वर्ष के बाद भी हम आज शिवाजी महाराज के स्वराज, स्वभाषा और स्वधर्म के सिद्धांत पर बल देकर काम करें. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नई शिक्षा नीति में मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा पर बल देने का काम किया है. उन्होंने कहा कि बच्चे की अभिव्यक्ति, सोचने, समझने, तर्क, विश्लेषण और निर्णय पर पहुंचने की प्रक्रिया की सबसे सुगम भाषा उसकी मातृभाषा होती है. इसी कारण प्रधानमंत्री ने मातृभाषा में शिक्षा पर बहुत बल दिया है. गृह मंत्री शाह ने कहा कि हमारे आजादी के आंदोलन में भी हिंदी का बहुत बड़ा योगदान है. 1857 की क्रांति के विफल होने के पीछे एक प्रमुख कारण किसी संपर्क भाषा का न होना था. उन्होंने कहा कि हमारा देश जियोपालिटिकल नहीं बल्कि भूसांस्कृतिक देश है और संस्कृति हमारे देश को जोड़ने वाली एक मजबूत कड़ी है. शाह ने कहा कि हमारे देश की एकता संस्कृति से बनी है, हमारी संस्कृति भाषाओं से जुड़ी और बनी है.जिस दिन हम अपनी भाषाओं को गंवा देंगे उस दिन देश की एकता पर बहुत बड़ा खतरा मंडराने लगेगा.

केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि चाहे डा अंबेडकर हों, राजगोपालाचारी, महात्मा गांधी, सरदार वल्लभभाई पटेल, केएम मुंशी, लाला लाजपत राय, नेताजी सुभाष चंद्र बोस या फिर आचार्य कृपलानी हों, हिंदी को बढ़ावा देनेवाले हमारे नेताओं में अधिकतर गैर-हिंदी भाषी क्षेत्रों से आते थे. इन सभी की मातृभाषा अलग थी, मगर वे समझते थे कि हिंदी भाषा देश को एक करने का एक माध्यम है इसलिए उन्होंने हिंदी को राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बनाकर राजभाषा का स्वरूप दिया. शाह ने कहा कि हमारी भाषाओं को अगर कोई बचा सकता है तो वो केवल माताएं ही बचा सकती हैं. गृह मंत्री ने सभी अभिभावकों से अनुरोध किया कि वे अपने बच्चों के साथ अपनी मातृभाषा में ही बात करें. उन्होंने कहा कि अगर हम ये करते हैं तो हमारी भाषाओं को कोई समाप्त नहीं कर सकता. हमारी भाषाएं चिरकाल तक देश और दुनिया की सेवा करती रहेगीं. शाह ने कहा कि आने वाला समय भारत की भाषाओं और सभी भाषाओं का है. उन्होंने कहा कि अब इस देश को कोई भी किसी भी प्रकार की गुलामी में नहीं रख सकता और भाषा की गुलामी में तो कभी नहीं रख सकता. गृह मंत्री ने कहा कि ये दिन भारत की सभी भाषाओं को मजबूत करने और राजभाषा को देश की संपर्क भाषा बनाने का दिन है जिसके माध्यम से हम अपनी भाषाओं में अपने देश का कामकाज कर सकें. उन्होंने कहा कि कई शब्द हिंदी में नहीं हैं लेकिन अन्य स्थानीय भाषाओं में हैं और हमने उन्हें स्वीकार किया है. हिंदी जब इन शब्दों को स्वीकार करती है तो हमारी स्थानीय भाषाएं भी हिंदी के कई शब्दों को स्वीकारती हैं. गृह मंत्री ने कहा कि हमने हिंदी शब्द सिंधु शब्दकोष में भारत की हर भाषा के शब्दों को समाहित किया है. हमें हिंदी को स्वीकार्य, लचीली और बोलचाल की भाषा बनाना चाहिए. गृह मंत्री ने विश्वास व्यक्त किया कि अगले 5 सालों में हिंदी शब्द सिंधु शब्दकोष विश्व का सबसे बड़ा शब्दकोष बनेगा. शाह ने कहा कि आज हिंदी संयुक्त राष्ट्र की भाषा बन चुकी है और 10 से अधिक देशों की द्वितीय भाषा भी बन चुकी है. हिंदी अब अंतर्राष्ट्रीय भाषा बनने की दिशा में आगे बढ़ रही है. उन्होंने कहा कि भारत की भाषाएं हिंदी से ही मजबूत हो सकती है और हिंदी भी भारतीय भाषाओं से ही मजबूत हो सकती है. उन्होंने कहा कि आज गृह मंत्रालय और सहकारिता मंत्रालय में एक भी फाइल और पत्र व्यवहार हिंदी में होता है. गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि भाषा अभिव्यक्ति है और जब अपनी भाषा में अभिव्यक्ति हो तभी वह मुखर होती है.