नई दिल्ली: “भाषा केवल संवाद का माध्यम भर नहीं होती! भाषा सभ्यता और संस्कृति की आत्मा होती है. हर भाषा से उसके मूल भाव जुड़े होते हैं.” प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अंतर्राष्ट्रीय अभिधम्म दिवस कार्यक्रम के उदघाटन समारोह को संबोधित करते हुए यह बात कही. उन्होंने कहा कि भाषा, साहित्य, कला, अध्यात्म… किसी भी राष्ट्र की ये धरोहरें उसके अस्तित्व को परिभाषित करती हैं. इसीलिए दुनिया के किसी भी देश में कहीं कुछ सौ साल पुरानी चीज मिल भी होती है तो उसे पूरी दुनिया के सामने गर्व से प्रस्तुत करता है. हर राष्ट्र अपनी विरासत को अपनी पहचान के साथ जोड़ता है. लेकिन दुर्भाग्य से, भारत इस दिशा में काफी पीछे छूट गया था. आज़ादी के पहले भारत की पहचान मिटाने में लगे आक्रमणकारी….और आजादी के बाद गुलामी की मानसिकता के शिकार लोग…भारत में एक ऐसे इकोसिस्टम का कब्जा हो गया था जिसने हमें उल्टी दिशा में धकेलने के लिए काम किया. जो बुदध भारत की आत्मा में बसे हैं…आज़ादी के समय बुदध के जिन प्रतीकों को भारत के प्रतीक चिन्हों के तौर पर अंगीकार किया गया….बाद के दशकों में उन्हीं बुदध को भूलते चले गए. पाली भाषा को सही स्थान मिलने में 7 दशक ऐसे ही नहीं लगे.
प्रधानमंत्री ने कहा कि देश अब उस हीनभावना से मुक्त होकर आत्मसम्मान, आत्मविश्वास, आत्मगौरव के साथ आगे बढ़ रहा है, देश इसकी बदौलत बड़े फैसले कर रहा है. इसीलिए, आज एक ओर पाली भाषा को शास्त्रीय भाषा, क्लासिकल लैंग्वेज का दर्जा मिलता है, तो साथ ही यही सम्मान मराठी भाषा को भी मिलता है. और देखिए कितना बड़ा सुभग संयोग है कि बाबा साहेब आंबेडकर से भी ये सुखद रूप से जुड़ जाता है. बौद्ध धर्म के महान अनुयायी हमारे बाबा साहेब आंबेडकर.. पाली में उनकी धम्म दीक्षा हुई थी, और वो स्वयं उनकी मातृभाषा मराठी थी. इसी तरह, हमने बांग्ला, असमिया और प्राकृत भाषा को भी शास्त्रीय भाषा, क्लासिकल लैंग्वेज का दर्जा दिया है. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत की ये भाषाएं ही हमारी विविधता को पोषित करती हैं. अतीत में, हमारी हर भाषा ने राष्ट्र निर्माण में अहम भूमिका निभाई है. आज देश ने जो नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति अपनाई है, वो भी इन भाषाओं के संरक्षण का माध्यम बन रही है. देश के युवाओं को जब से मातृभाषा में पढ़ाई का विकल्प मिला है, मातृभाषाएं और ज्यादा मजबूत हो रही हैं.