चेन्नई: “भारत की विविधता में ही उसकी एकात्मकता निहित है. वह अलग-अलग भाषाओं, अलग-अलग राज्यों, अलग-अलग संस्कृति और अलग-अलग समुदायों, धर्मों में एक धड़कन की तरह रहता है. हमारा साहित्य हमारी इसी धड़कन को दिखाता है.” यह बात तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि ने ‘काशी वाराणसी विरासत फाउंडेशन’ द्वारा तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में आयोजित ‘भारत: साहित्य मीडिया महोत्सव’ के दौरान कही. तमिल, अंग्रेजी और हिंदी भाषा के मिले-जुले उद्बोधन में राज्यपाल ने इस आयोजन की सार्थकता पर अपनी बात रखी. उन्होंने कहा कि वाल्मीकि के रामायण, कंबन के रामचरित्रम और तुलसीदास के रामचरितमानस की आत्मा एक है, जो संस्कृत से लेकर तमिल और हिंदी तक फैली हुई है. उन्होंने कहा कि मौजूदा इंडिया तो एक भौगोलिक और राजनीतिक क्षेत्र के रूप में हमें आजादी के दिन प्राप्त हुआ है, लेकिन भारत तो हजारों साल प्राचीन है. राज्यपाल ने कहा कि तमिलनाडु की धरती भक्ति की जननी है. भारत में साहित्य ने निरंतर भारतीयता का सृजन और पोषण किया है. भारत को पूरी तरह समझने के लिए हमें देश की सभी भाषाओं और उसके साहित्य की ओर जाना होगा. उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता करते हुए फाउंडेशन के अध्यक्ष डा रवींद्र किशोर सिन्हा ने वाराणसी में सुब्रह्मण्य भारती का स्मारक एवं पुस्तकालय बनाए जाने का संकल्प व्यक्त किया. उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि देश की हिंदी-अंग्रेजी पत्रकारिता में तमिल साहित्यकारों और पत्रकारों का योगदान महत्त्वपूर्ण रहा है. यह योगदान चाहे वह 1857 से 1947 के स्वतंत्रता संग्राम का रहा हो या आजादी के बाद आपातकाल का दौर हो, तमिल का योगदान अत्यंत सराहनीय है. उन्होंने याद किया कि यदि काशी में वेद-पाठ के लिए किसी विद्वान को ढूंढना हो तो वह तमिल का ही मिलेगा. साहित्य सेवा यही है कि हम जानें कि दूसरी भाषा के साहित्य में क्या हो रहा है, यही सामाजिक समरसता को सुदृढ़ करेगा और आने वाली पीढ़ी को भी इसका लाभ मिलेगा.

इससे पूर्व साहित्यकारों का स्वागत उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के निदेशक आरपी सिंह ने किया. समारोह को साहित्य अकादेमी की उपाध्यक्ष प्रोफेसर कुमुद शर्मा, लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर आलोक राय, सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता भरत नागर, गांधी शांति प्रतिष्ठान बेंगलुरु के सचिव उडुपी कृष्ण ने भी संबोधित किया. धन्यवाद ज्ञापन शरद कुमार त्रिपाठी ने किया जबकि संचालन प्रो राम मोहन पाठक ने किया. महात्मा गांधी द्वारा 17 जून, 1918 को स्थापित और राष्ट्रीय महत्त्व के ऐतिहासिक संस्थान दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के दीक्षा मंडपम में इस तीन दिवसीय महोत्सव का आयोजन किया गया है. इसमें 14 राज्यों से आए साहित्यकार, विद्वान, शिक्षाविद, पत्रकार एवं मीडियाकर्मी भाग ले रहे हैं. उद्घाटन समारोह में चेन्नई महोत्सव की स्मारिका ‘साहित्य भारत’ के लोकार्पण के साथ-साथ तीन अन्य पुस्तकों डा किंशुक पाठक की ‘मीडिया: नए आयाम’, कमलेश भट्ट कमल की ‘चयनित कहानियां’ तथा डा राजलक्ष्मी की ‘तमिल की कहानियां’ का भी लोकार्पण किया गया. प्रथम विचार सत्र ‘लोक, लोकतंत्र और साहित्य: बदलते सरोकार’ की अध्यक्षता प्रोफेसर कुमुद शर्मा ने की, जिसमें प्रो एसवीएस, एस नारायण राजु, डा नीरज गुर्रुमकोंडा ने अपने विचार रखे.‌ संचालन डा बी संतोषी कुमारी ने किया. इस सत्र में दो कविता पुस्तकों डा नीलम वर्मा की’ज्योतिर्मय और उषा किरण टिबड़ेवाल की ‘यात्रा जारी है’ का भी विमोचन किया गया. अगले सत्र में तमिल और अंग्रेजी के साहित्यकार मालन नारायणन से अशोक शास्त्री ने तो सिद्धार्थ शर्मा से डाक्टर परमानंद मिश्रा ने संवाद किया. समारोह के अंतिम सत्र के रूप में प्रतिभागी कवियों ने काव्य पाठ किया. कवि-गोष्ठी की अध्यक्षता साहित्यकार डा नीलम वर्मा ने तथा संचालन डा संजीव पांडेय ने किया. कविता पाठ करने वाले कवियों में ओम प्रकाश त्रिपाठी, डा अरुण कुमार वर्मा, रमेश, डा सौम्या, डा रीता कुमारी, डा दीपाली, भारत भूषण, अरविंद मिश्र हर्ष और भुवनेश्वरी शामिल थे. इस अवसर पर साहित्य अकादेमी द्वारा हिंदी, तमिल, अंग्रेजी साहित्य की पुस्तकों की एक समृद्ध प्रदर्शनी भी लगाई गई.