स्टेनकेलेनर के अनुसार भारत से बाहर के शोध संस्थानों में राहुल सांकृत्यायन को जो स्थान प्राप्त है, वह किसी भारतीय राजनेता के लिए भी मुमकिन नहीं है. काशी के बौद्धिक समाज ने उन्हें 'महापंडित' के अलंकार से सम्मानित किया था. राहुल सांकृत्यायन ने कहानी, उपन्यास, यात्रा वर्णन, जीवनी, संस्मरण, विज्ञान, इतिहास, राजनीति, दर्शन जैसे विषयों पर विभिन्न भाषाओं में लगभग 155 ग्रंथ लिखे. हिंदी के प्रति अपनी निष्ठा के कारण उन्होंने कम्यूनिस्ट पार्टी से त्यागपत्र दे दिया. साल 1947 में मुंबई ‘हिंदी साहित्य सम्मेलन’ में उन्हें निर्विरोध सभापति चुना गया. अपने जीवनकाल में 50 हजार से अधिक पन्ने लिखने वाले राहुल सांकृत्यायन ने अपने घुमक्कड़ी जीवन में कितने लाख किलोमीटर की यात्रा की, कितने हजार किलोमीटर वे पैदल ही चले, इसका किसी को पता नहीं है. प्रसिद्ध पुस्तक 'मध्य एशिया का इतिहास' की रचना के लिए राहुल सांकृत्यायन किस तरह से 200 से अधिक किलो वजन की किताबें सोवियत संघ से साथ ढोकर भारत लाए, उससे उनकी रचनाप्रक्रिया की अदम्य साधना को समझा जा सकता है.
भारतीय भाषाओं के महान सेवी, मानव सभ्यता की ऐतिहासिक यात्रा के द्रष्टा महापंडित की याद
उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के पन्दहा ग्राम में 9 अप्रैल, 1893 को केदार पांडेय के रूप में जन्मे और अपने सृजनकर्म के चलते महान लेखक, इतिहासविद, पुरातत्ववेत्ता, त्रिपिटकाचार्य के साथ-साथ एशियाई नवजागरण के प्रवर्तक-नायक और महापंडित कहलाने वाले राहुल सांकृत्यायन की 9 अप्रैल को जयंती थी. अध्ययन और ज्ञान की पिपासा ने उन्हें एक शोधार्थी और घुमक्कड़ बना दिया. उन्होंने विश्व के अनेक देशों की यात्रा की और खूब पढ़ा-लिखा. वह हिंदी, उर्दू, संस्कृत, तमिल, कन्नड़, पाली, अंग्रेजी, जापानी, रूसी, तिब्बती और फ्रांसीसी सहित कुल 36 भाषाओं के ज्ञाता थे. वोल्गा से गंगा लिखने से पहले राहुल सांकृत्यायन ने मानव सभ्यता के 8 हजार वर्षों के इतिहास को जैसे अपनी आंखों से देखकर दुनिया के सामने रखा. प्रभाकर माचवे के अनुसार, 'वोल्गा से गंगा' प्रागैतिहासिक और एतिहासिक ललित कथा संग्रह की अनोखी कृति है. हिंदी साहित्य में विशाल आयाम के साथ लिखी गई यह पहली कृति है.' महाप्राण निराला के शब्दों में, 'हिंदी के हित का अभिमान वह, दान वह.' हिंदी के साथ-साथ भारत की सबसे प्राचीन भाषा पाली और संस्कृत को दुनिया में प्रतिष्ठित कराने का श्रेय भी राहुल सांकृत्यायन को ही जाता है. जर्मनी के प्रसिद्ध अध्येता अर्नस्ट स्टेनकेलेनर ने राहुल सांकृत्यायन के प्रभाव में पाली, संस्कृत और तिब्बती पर अपनी दक्षता कायम की. स्टेनकेलेनर ने तिब्बती पाण्डुलिपियों पर गहन शोध किया, जिसे नीदरलैंड रॉयल अकेडमी ऑफ़ आर्ट्स एंड साइंस ने 2004 में प्रकाशित किया.