नई दिल्ली: भारतीय अंतरराष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव के सबसे प्रमुख आयोजनों में से एक है ‘विज्ञानिका: विज्ञान साहित्य महोत्सव‘. यह दो दिवसीय कार्यक्रम विशेष रूप से ‘लोककथा से भविष्य तक: भारतीय साहित्यिक अन्वेषण‘ विषय पर केंद्रित था. प्रथम दिन सत्र की शुरुआत सीएसआईआर-राष्ट्रीय विज्ञान संचार एवं नीति अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक और विज्ञानिका के समन्वयक डा परमानंद बर्मन के परिचयात्मक भाषण से हुई. सीएसआईआर-राष्ट्रीय विज्ञान संचार एवं नीति अनुसंधान संस्थान की निदेशक प्रो रंजना अग्रवाल ने स्वागत भाषण दिया और विज्ञान संचार में भारतीय भाषाओं के महत्त्व और भारतीय विज्ञान वर्णन को आकार देने में साहित्य की भूमिका को रेखांकित किया. डा दिनेश चौधरी गोस्वामी, असम विज्ञान प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण परिषद के निदेशक डा जयदीप बरुआ, इंटरनेशनल एडवांस्ड रिसर्च सेंटर फार पाउडर मेटलर्जी एंड न्यू मैटेरियल्स हैदराबाद के निदेशक डा आर विजय सहित विशिष्ट अतिथियों ने अपने बहुमूल्य विचार साझा किए.
डा गोस्वामी ने ऐतिहासिक ग्रंथों, पुस्तकों और विज्ञान कथाओं से समर्थन प्राप्त करते हुए असम में विज्ञान संचार की यात्रा पर चर्चा की. डा विजय ने कहा कि विज्ञान संचार भारतीय भाषाओं में होना चाहिए और यह संवादात्मक होना चाहिए. महोत्सव के पहले वैज्ञानिक सत्र ‘साहित्य के साथ भारतीय विज्ञान विवरण को आकार देना‘ की अध्यक्षता वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद के पूर्व महानिदेशक प्रो शेखर सी. मांडे ने की. वक्ताओं में पद्म श्री से सम्मानित और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान बाम्बे के प्रोफेसर रामकृष्ण वी होसुर शामिल थे. इन्होंने प्राचीन भारतीय ज्ञान प्रणालियों पर गहन चर्चा की, जबकि अंतर-विश्वविद्यालय त्वरक केंद्र के निदेशक प्रो अविनाश चंद्र पांडे ने भारतीय ज्ञान की समावेशिता पर चर्चा की. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान इंदौर के प्रो गंती मूर्ति ने विभिन्न रूपों में विज्ञान के प्रसार पर दार्शनिक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया. ‘अपनी भाषा अपना विज्ञान: भारतीय भाषाओं में विज्ञान का संचार‘ विषय पर चर्चा की अध्यक्षता जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर माधव गोविंद ने की. पैनलिस्टों में असमिया, मणिपुरी, बोडो, डोगरी, हिंदी, मराठी, तेलुगु और गुजराती जैसी विविध भाषाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले देश के प्रमुख विज्ञान संचारक शामिल थे. पैनल ने भारतीय भाषाओं में विज्ञान का संचार करने और समावेशिता और व्यापक पहुंच को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर विचार-विमर्श किया. समानांतर सत्र में सीएसआईआर-राष्ट्रीय विज्ञान संचार एवं सूचना केंद्र के पूर्व निदेशक डा मनोज कुमार पटैरिया और आरती हल्बे द्वारा लोकप्रिय विज्ञान लेखन पर एक कार्यशाला आयोजित की गई.