नई दिल्लीः अनुवाद केवल दोभाषाओं को जोड़ता भर नहीं है, बल्कि यह शब्द और साहित्य की दुनिया को और विस्तार देता है. यही वजह है कि अशोक विश्वविद्यालय में रचनात्मक लेखन विभाग में सह-प्राध्यापक और अशोक सेंटर फॉर ट्रांसलेशन के सह-निदेशक अरुणावा सिन्हा को जब जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में वाणी फाउंडेशन और टीमवर्क आर्ट्स के विशिष्ट अनुवादक पुरस्कार से नवाजा गया, तो अनुवाद की महत्ता को लेकर कई विचार सामने आए. इस अवसर पर जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल की संस्थापक और सह-निदेशक नमिता गोखले की यह टिप्पणी काबिलेगौर है- “भारतीय उपमहाद्वीप में साहित्यिक अनुवाद के क्षेत्र में बहुत कुछ किया जाना है, और मैं यह जानती हूं कि के सूक्ष्म रूपान्तरण भारत की कई भाषाओं और साहित्य को धारणा और आत्म-जागरूकता के नवीन स्तर पर लायेंगे.” पब्लिशिंग कंसल्टेंट नीता गुप्ता ने सिन्हा की तारीफ में कहा था कि विपुल जैसा शब्द भी कम पड़ जाता है जब आप अरुणावा सिन्हा के अनुवाद कार्य की बात करते हैं. आपकी अनूदित कृतियां अनुवाद के क्षेत्र में मिसाल हैं.
उसी अवसर पर एक और महत्त्वपूर्ण टिप्पणी सांस्कृतिक आलोचक, समाजसेवी, पर्यावरणविद,लेखक और प्रभा खेतान फाउंडेशन के कर्ताधर्ता संदीप भूतोड़िया ने भी की. उनका कहना था कि वाणी फाउंडेशन विशिष्ट अनुवादक पुरस्कार 2022 के लिए जूरी का हिस्सा बनना गर्व की बात है क्योंकि वे लगातार भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए काम करते आ रहे हैं और उन अनुवादकों को सम्मानित करते रहे हैं जिन्होंने भारतीय भाषाओं के बीच साहित्यिक और भाषाई आदान-प्रदान की सुविधा प्रदान की. इस वर्ष के पुरस्कार विजेता अरुणावा सिन्हा ने क्लासिक, आधुनिक और समकालीन बांग्ला कथा-साहित्य और कथेतर का अंग्रेज़ी में अनुवाद किया है और ऐसा करके उन्होंने भाषाओं और संस्कृति के बीच एक कड़ी बनाई है. एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जो भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए कार्य करता है. हम 'अपनी भाषा अपने लोग' में विश्वास करते हैं और यह हमारे फाउंडेशन की टैगलाइन भी है जो भारत की विविध भाषाओं, साहित्य और संस्कृति के संगम का उत्सव मनाता है.“