भोपालः जिस तरह हम बोलते हैं उस तरह तू लिख/ और इसके बाद भी हम से बड़ा तू दिख… ऐसी बहुतेरी पंक्तियों के रचनाकार प्रसिद्ध कवि तथा गांधीवादी विचारक भवानी प्रसाद मिश्र की पुण्‍यतिथि जहां राज्य भर में उन्हें याद किया गया, वहीं उनकी कालजयी कृति 'सन्नाटा' पर बने शिलालेख के होशंगाबाद में तोड़े जाने की खबर से साहित्य जगत दुखी है. प्राप्त खबर के मुताबिक स्थानीय नगर पालिका के द्वारा पांच वर्ष पूर्व उत्कृष्ट विद्यालय के पीछे होशंगशाह के किले के पास करीब 20 लाख की लागत से राष्ट्रकवि भवानी प्रसाद मिश्र की याद में भवानी उद्यान बनाया गया था. तब इस प्राचीन किले की क्षतिग्रस्त दीवार का भी जीर्णोद्धार कराया गया, और भवानी दादा की याद में उनकी प्रसिद्ध रचना सन्नाटा का शिलालेख तैयार कर लगाया गया. उद्देश्य यह था कि जो लोग यहां आएं वे दादा की रचना भी पढ़ सकें. शिलालेख के पास आकर्षक पौधे लगाए गए थे. पार्क के पास सुंदर गेट बनवाया गया था और कुर्सी रखी गई थी. पिछले दिनों किसी असामाजिक तत्व ने सन्नाटा के शिलालेख को तोड़ दिया. इस बात को लेकर शहर के साहित्यकार नाराज हो गए. घटना के संबंध में मंगलवारा के पास रहने वाले समाजसेवी प्रमोद सोनी ने बताया कि वे प्रातःकाल भ्रमण के लिए तथा नर्मदा जी के दर्शन के लिए भवानी उद्यान में आते हैं. गत दिवस उन्होंने देखा कि किसी ने राष्ट्रकवि की प्रसिद्ध रचना सन्नाटा का शिलालेख तोड़ दिया है. नगर पालिका ने इस मामले को गंभीरता लिया. नगर के वरिष्ठ साहित्यकार नगरश्री पं गिरिमोहन गुरु ने नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि भवानी दादा का नाम देश के प्रसिद्ध कवियों में लिया जाता है. उनके नाम पर भवानी उद्यान बनाकर नपा ने श्रेष्ठ कार्य किया है. उनकी रचना का शिलालेख लगाया गया था. जो आकर्षक था उसे जिन लोगों ने तोड़ा है उन पर सख्त कार्रवाई होना चाहिए.
उत्कृष्ट विद्यालय की प्राचार्य साधना बिलथरिया ने भी नाराजगी जाहिर की. नगरवासियों के आक्रोश को देखते हुए नगरपालिका अधीक्षक डॉ प्रशांत जैन ने कहा कि नपा द्वारा राष्ट्रकवि भवानी दादा की याद में पार्क बनाया गया है. दादा की सन्नाटा कविता का शिलालेख भी पार्क में लगाया गया था. जिस किसी ने पार्क के शिलालेख को क्षतिग्रस्त किया है, उस पर एफआईआर दर्ज कराई जाएगी. साथ ही दूसरे शिलालेख लगाने की कोशिश की जाएगी. याद रहे कि. भवानी प्रसाद मिश्र 'दूसरा सप्तक' के प्रथम कवि हैं. गांधी-दर्शन का प्रभाव तथा उसकी झलक उनकी कविताओं में साफ़ देखी जाती है. उनका प्रथम संग्रह 'गीत-फ़रोश' अपनी नई शैली, नई उद्भावनाओं और नये पाठ-प्रवाह के कारण अत्यंत लोकप्रिय हुआ. प्यार से लोग उन्हें भवानी भाई कहकर सम्बोधित किया करते थे. भवानी भाई को 1972 में उनकी कृति 'बुनी हुई रस्सी' पर साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला. 1981-82 में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का साहित्यकार सम्मान दिया गया तथा 1883 में उन्हें मध्य प्रदेश शासन के शिखर सम्मान से अलंकृत किया गया. गांव टिगरिया, तहसील सिवनी मालवा, जिला होशंगाबाद मध्य प्रदेश में 29 मार्च, 1913 को जन्‍मे भवानी प्रसाद मिश्र कविता को ही अपना धर्म मानते थे. वे आम जनों की बात उनकी भाषा में ही रखते थे. उनकी बहुत सारी कविताओं को पढ़ते हुए महसूस होता है कि कवि आपसे बोल रहा है, बतिया रहा है. आपातकाल के दौरान उन्होंने ठान लिया था कि दिन के तीन पहर कविताएं लिखेंगे. उन्होंने सुबह, दोपहर और शाम कविताएं लिखीं. जिसे त्रिकाल संध्या नामक पुस्तक में प्रकाशित किया गया.उनके पुत्र अनुपम मिश्र सुपरिचित पर्यावरणविद थे. वाकई शायद शिलापट तोड़ने वाले नहीं जानते होंगे भवानी प्रसाद मिश्र की सन्नाटा कविता के शिलालेख का महत्त्व.