नई दिल्लीः फिक्की सभागार में पाठ्यसामग्री की विविधता पर आयोजित परिचर्चा में हिस्सा लेते हुए राष्ट्रीय पुस्तक न्यास,भारत के अध्यक्ष प्रो गोविंद प्रसाद शर्मा ने कहा कि बच्चों के लिए आज संस्कार उतने ही जरूरी हैं, जितना उनके लिए किताबें. उनका कहना था कि पिछले कुछ समय से कई दृष्टियों से शिक्षा पर विचार हुआ है. आज प्राथमिक व उच्चतर शिक्षा में भी कुछ व्यवहारिक चीजों में बदलाव हुआ है, ताकि हमारी पीढ़ी समय से साक्षात्कार कर सके. बावजूद इसके अभी भी विद्यालयों से साहित्य गायब हुआ है. अधिकांश विद्यालयों में अब भी भाषा के विभाग नहीं हैं, ये बड़ी चिंता का विषय है. अन्य विभागों पर ध्यान दिया जा रहा है, पर भाषा पर जोर नहीं है. इसका परिणाम यह हुआ है कि भाषा के प्रति बच्चों का लगाव नहीं है और उनकी भावनाओं पर यह दबाव हावी हो रहा है कि वे विज्ञान के प्रति केंद्रित रहें.
प्रो गोविंद प्रसाद शर्मा ने कहा कि यह एक किस्म की ट्रेजडी है कि बच्चों के जीवन से परियों की कथाएं गायब हो गईं. इसके कारण उनके स्वभाव में अजीब तरह का बदलाव आ रहा है. आज के बच्चों के स्वभाव के प्रति हमारी भूमिका बनती है कि वे समाज के प्रति दयावान, समर्पित रहें, उनमें संस्कार बने रहें. उनकी कल्पनाओं को बनाये व बचाये रखना होगा. हमें यह भूलना नहीं चाहिए कि आज भी परियों की कथाओं ने ही साइंस को बेस दिया है, तभी उनके जीवन में उड़ने का विचार आया, तभी वे एक्टिव हुए. हमें यह सोचना ही होगा कि हम छोटे बच्चों को पढ़ने के लिए क्या उपलब्ध करवा रहे हैं, आज जो बच्चों को दिया जा रहा है वह कितना रिलेवेंट है. इस अवसर पर न्यास निदेशक नीरा जैन सहित न्यास से जुड़े अंग्रेजी संपादक कुमार विक्रम, असमिया सम्पादक दीप सैकिया, ओड़िया सम्पादक डॉ प्रमोद सर, हिंदी सहायक संपादक डॉ ललित किशोर मंडोरा, सहायक निदेशक बिक्री सुमित भट्टाचार्जी सहित पुस्तक उद्योग के जाने-माने लोकप्रिय प्रकाशक मौजूद थे