दरभंगा: मारवाड़ी कालेज के हिंदी विभाग ने ‘प्रेमचंद को पढ़ते हुए…’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की. गोष्ठी की शुरुआत दीप प्रज्वलन से हुई. उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के मानविकी संकाय अध्यक्ष प्रो चंद्रभानु प्रसाद सिंह थे. उन्होंने कहा कि प्रेमचंद के लिए स्वाधीनता का अर्थ शोषण से मुक्ति है. प्रेमचंद ने अपने साहित्य में छोटे किसान व मजदूरों के यथार्थ को चित्रित किया है. उनके साहित्य में पुरोहितवाद का विरोध है. इस अवसर पर प्राध्यापक हरि नारायण सिंह ने कहा कि दरिद्रता पर प्रेमचंद ने बहुत विस्तार से लिखा है. प्रेमचंद का शुरुआती लेखन आदर्शवादी है, और बाद में वे यथार्थवादी बन गए. बाबा साहब भीमराव अंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय लखनऊ के स्नातकोत्तर हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो रामपाल गंगवार ने प्रेमचंद के साहित्य को स्वतंत्रता के मूल्यों के माध्यम से देखने का प्रयास किया. लनामिवि के स्नातकोत्तर हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो उमेश कुमार ने प्रेमचंद के साहित्य में राजनीतिक सरोकारों पर प्रकाश डाला. सुनील कुमार सिंह ने प्रेमचंद के साहित्य को यथार्थवाद की दृष्टि से विश्लेषित किया.

संगोष्ठी की अध्यक्षता प्रधानाचार्य डा दिलीप कुमार ने किया. संचालन डा अनिरुद्ध सिंह और धन्यवाद ज्ञापन डा अवधेश प्रसाद यादव ने किया. प्रथम तकनीकी सत्र में जेएनयू नई दिल्ली के डा मलखान सिंह ने कहा कि प्रेमचंद ने किसान जीवन को अपनी रचनाओं का आधार बनाया. काशी हिंदू विश्वविद्यालय के डा किशन सिंह पटेल ने प्रेमचंद के साहित्य में नवजागरण की चर्चा की. डा आनंद प्रसाद गुप्ता ने दलित चेतना व पुरोहितवाद पर बात रखी. डा महेश प्रसाद सिंह ने कहा कि प्रेमचंद सामंती व्यवस्था के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ते हुए विशाल साहित्य सृजन किया. अध्यक्षता करते हुए प्रो विजय कुमार ने प्रेमचंद की कहानी-कला पर प्रकाश डाला. इस सत्र का संचालन डा विकास सिंह व धन्यवाद ज्ञापन डा सुनीता कुमारी ने किया. इस मौके पर डा कुमारी कविता, डा विनोद कुमार बैठा, डा मनोज कुमार, डा अंकित कुमार सिंह, डा गजेंद्र भारद्वाज, डा निहार रंजन सिन्हा, मनोज कुमार व वीणा कुमारी आदि मौजूद रहे. संगोष्ठी के दूसरे दिन दो सत्र आनलाइन हुए. इससे पूर्व संयोजक डा अनिरुद्ध सिंह ने पाग, चादर और स्मृति चिन्ह से अतिथियों को सम्मानित किया.