नई दिल्ली: देश में ‘टाइगर दिवस‘ पर कई आयोजन किए जाते हैंपर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘मन की बात‘ कार्यक्रम में बाघों के संरक्षण से जुड़ी अनूठी कहानियां सुना कर श्रोताओं का दिल जीत लिया. उन्होंने कहा कि भारत में तो टाइगर्स यानी ‘बाघ‘, हमारी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रहा है. हम सब बाघों से जुड़े किस्से-कहानियां सुनते हुए ही बड़े हुए हैं. जंगल के आसपास के गांव में तो हर किसी को पता होता है कि बाघ के साथ तालमेल बिठाकर कैसे रहना है. हमारे देश में ऐसे कई गांव हैंजहां इनसान और बाघ के बीच कभी टकराव की स्थिति नहीं आती. लेकिन जहां ऐसी स्थिति आती हैवहां भी बाघों के संरक्षण के लिए अभूतपूर्व प्रयास हो रहे हैं. जन-भागीदारी का ऐसा ही एक प्रयास है ‘कुल्हाड़ी बंद पंचायत‘. राजस्थान के रणथंभौर से शुरू हुआ ‘कुल्हाड़ी बंद पंचायत‘ अभियान बहुत दिलचस्प है. स्थानीय समुदायों ने स्वयं इस बात की शपथ ली है कि जंगल में कुल्हाड़ी के साथ नहीं जाएंगे और पेड़ नहीं काटेंगे. इस एक फैसले से यहां के जंगलएक बार फिर से हरे-भरे हो रहे हैंऔर बाघों के लिए बेहतर वातावरण तैयार हो रहा है.

प्रधानमंत्री ने बाघों के प्रमुख बसेरों में से एक महाराष्ट्र के ताडोबा-अंधारी व्याघ्र प्रकल्प की चर्चा की और कहा कि यहां के स्थानीय समुदायोंविशेषकर गोंड और माना जनजाति ने इको-टूरिज्म की ओर तेजी से कदम बढ़ाए हैं. उन्होंने जंगल पर अपनी निर्भरता को कम किया है ताकि यहां बाघों की गतिविधियां बढ़ सकें. आंध्र प्रदेश की नल्लामलाई की पहाड़ियों पर रहने वाले ‘चेन्चू‘ जनजाति के प्रयास को हैरान कर देने वाला बताते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि इन्होंने टाइगर ट्रैकर्स के तौर पर जंगल में वन्य जीवों की हर गतिविधि की जानकारी जमा की. इसके साथ हीवेक्षेत्र मेंअवैध गतिविधियों की निगरानी भी करते रहे हैं. इसी तरह उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में चल रहा ‘बाघ मित्र कार्यक्रम‘ भी बहुत चर्चा में है. इसके तहत स्थानीय लोगों को ‘बाघ मित्र‘ के रूप में काम करने की ट्रेनिंग दी जाती है. ये ‘बाघ मित्र‘ इस बात का पूरा ध्यान रखते हैं कि बाघों और इनसानों के बीच टकराव की स्थिति ना बने. देश के अलग-अलग हिस्सों में इस तरह के कई प्रयास जारी हैं. जन-भागीदारी बाघों के संरक्षण में बहुत काम आ रही है. ऐसे प्रयासों की वजह से ही भारत में बाघों की आबादी हर साल बढ़ रही है. दुनियाभर में जितने बाघ हैं उनमें से 70 प्रतिशत बाघ हमारे देश में हैं. बाघ बढ़ने के साथ-साथ हमारे देश में वन क्षेत्र भी तेजी से बढ़ रहा है. इसमें भी सामुदायिक प्रयासों से बड़ी सफलता मिल रही है.