नई दिल्ली: “साहित्य अकादेमी भारतीय साहित्य का दिल है और यहां 24 भारतीय भाषाओं के बीच भारतीय विविधता में एकता को जीवंत होते हुए देखा जा सकता है. ‘पुस्तकायन‘ पुस्तक मेले के जरिए अकादेमी ने एक ऐसी स्वस्थ परंपरा की शुरुआत की हैजो भविष्य में बच्चों और युवाओं को पढ़ने के लिए प्रेरित करेगी.” साहित्य अकादेमी द्वारा आयोजित ‘पुस्तकायन‘ पुस्तक मेले के तृतीय संस्करण का उद्घाटन करते हुए यह बात अमेरिका में भारत के पूर्व राजदूत एवं लेखक नवतेज सरना ने कही. अकादेमी परिसर में आयोजित पुस्तक मेले का उद्घाटन करते हुए सरना ने कहा कि पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र होती हैं और आगे चलकर एक सच्चे दोस्त की तरह हमारा साथ निभाती है. उन्होंने डिजिटल माध्यमों पर टिप्पणी करते हुए कहा कि उन्हें इस माध्यम से कोई समस्या नहीं है लेकिन उस पर उपलब्ध सामग्री का स्तर चिंता में डालने वाला है. उसे साहित्य नहीं कहा जा सकता. उन्होंने उपस्थित सभी लोगों से विशेषतः बच्चों से अनुरोध किया कि वह इंटरनेटफोन आदि के बजाए किताबे पढ़ने की कोशिश करेंजिससे कि वह तनावमुक्त हो सकेंगे. संस्कृति मंत्रालय की अपर सचिव एवं वित्तीय सलाहकार रंजना चोपड़ा ने कहा कि ‘पुस्तकायन‘ ने इतने ही कम वर्षों में काफी लोकप्रियता पाई है और किताबों से युवाओं को जोड़ने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया है. उन्होंने साहित्य अकादेमी द्वारा 24 भारतीय भाषाओं में काम करने की प्रशंसा करते हुए कहा कि इस कारण ही हमारी क्षेत्रीय भाषाओं का साहित्य जिंदा है. उन्होंने बच्चों से किताब पढ़ने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि इसके जरिए बच्चे आधुनिक समाज के लिए तैयार होंगे.

संस्कृति मंत्रालय की संयुक्त सचिव उमा नंदूरी ने पुस्तक मेले की लगातार उन्नति की तारीफ करते हुए कहा कि इससे राजधानी में एक नई पुस्तक संस्कृति का जन्म हो रहा है. उन्होंने बच्चों से अपील की वह सोशल मीडिया पर बहुत ज्यादा समय व्यतीत न करेंबल्कि उसकी जगह पुस्तकें पढ़ें जो उन्हें नई तरह की संतुष्टि देंगी और तनाव को कम करेंगी. उन्होंने मंत्रालय द्वारा संविधान निर्माण के 75 वर्ष पर और आगामी 25 वर्ष बाद भारत की स्थिति पर मंत्रालय की कई योजनाओं का जिक्र किया. अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में अकादेमी के अध्यक्ष माधव कौशिक ने कहा कि साहित्य अकादेमी के इस पुस्तकायन की अनोखी बात यह है कि यह लेखकपाठकप्रकाशकआलोचक चारों को एक मंच प्रदान करता है जो अन्य पुस्तक मेलों में नहीं होता है. उन्होंने पाठन के सुख का उदाहरण देते हुए कहा कि नई पीढ़ी को तकनीक से सहयोग लेना चाहिए न कि उसका गुलाम बनना चाहिए. पुस्तक मेले को हम ज्ञान के नए मंदिर के रूप में देख सकते हैं. हम अपने कार्यक्रमों में साहित्य की सभी विधाओं को मंच देते हैं. समापन वक्तव्य में साहित्य अकादेमी की उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा ने कहा कि आज रवींद्र भवन परिसर में इस पुस्तक मेले के जरिए ज्ञान का आलोक फैला है. वर्तमान सोशल मीडिया में सूचनाएं ज्यादाज्ञान कम हैं. समय के साथ संगति जरूरी है लेकिन अतीतभविष्य और वर्तमान के बीच संतुलन भी जरूरी हैजिसे बनाए रखने में पुस्तकें सबसे ज्यादा मदद करती है. कार्यक्रम के आरंभ में साहित्य अकादेमी के सचिव के श्रीनिवासराव ने सभी अतिथियों का स्वागत साहित्य अकादेमी की पुस्तकें एवं अंगवस्त्रम भेंट करके किया. उन्होंने कहा कि किताबे हमारी ज्ञान की सीमाओं का विस्तार करती हैं और हमारी दुनिया को नए अनुभवों से भरती हैं.