नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुआई में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा भारतीय भाषाओं के महत्त्व को बढ़ावा देने के क्रम में पाली और प्राकृत भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने का अपना महत्त्व है. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इन भाषाओं को मंजूरी प्रदान करते हुए इस बात का ध्यान रखा कि बौद्ध और जैन समुदाय लंबे समय से दोनों भाषाओं को मान्यता देने की मांग कर रहे थे, क्योंकि दोनों भाषाओं की भारतीय सामाजिक और धार्मिक इतिहास में समृद्ध परंपराएं हैं. बुद्ध की शिक्षाएं पाली भाषा में हैं, जो भारत से आरंभ हुई और दुनिया भर में फैल गई. दोनों भाषाएं भारत के प्राचीन साहित्य और सांस्कृतिक विरासत का भी समृद्ध स्रोत हैं.
केंद्रीय मंत्रिमंडल का मानना था कि जैन आगम और गाथा सप्तशती जैसे प्रमुख ग्रंथों के अलावा जैन अनुष्ठानों और धार्मिक प्रथाओं में प्राकृत का उपयोग महत्त्वपूर्ण है. बौद्ध एवं जैन अल्पसंख्यकों तथा सभी संबंधित पक्षों के अनुरोध पर राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग पाली और प्राकृत भाषा को बढ़ावा देने का मुद्दा विभिन्न संबंधित अधिकारियों के समक्ष उठाता रहा है. यह समुदाय प्रधानमंत्री के नेतृत्व में सरकार द्वारा लिए गए इस निर्णय का स्वागत करता है. समुदाय की ओर से जारी बयान में कहा गया कि केंद्र सरकार का यह निर्णय अल्पसंख्यक समुदायों के सपनों और आकांक्षाओं को पूरा करने के अलावा देश की भाषाई, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक परंपराओं को समृद्ध करेगा.