महाकवि नीरज के फिल्मी गीतों में प्रकृति, प्रेम और समाज भरपूर है, इसीलिए उनके गीतों की मधुरता काल के पार चली जाती है. हर उम्र और दौर में सुने जाने वाले इन गीतों में से जागरण हिंदी हैं हम के पाठकों के लिए उनके कुछ चुनिंदा गीतों की चंद पंक्तियांः
* लिखे जो ख़त तुझे वो तेरी याद में
हजारो रंग के नजारे बन गए
सवेरा जब हुआ, तो फूल बन गए
जो रात आयी तो सितारें बन गए
लिखे जो ख़त तुझे..
कोई नगमा कहीं गूंजा, कहा दिल ने ये तू आयी
कहीं चटकी कली कोई, मैं ये समझा तू शरमाई
कोई खुशबू कही बिखरी, लगा ये जुल्फ लहराई…
* मेघा छाए आधी रात, बैरन बन गई निंदिया
बता दे मैं क्या करूं- २
सब के आंगन दिया जले रे, मोरे आंगन जिया
हवा लागे शूल जैसी, ताना मारे चुनरिया
कैसे कहूं मैं मन की बात, बैरन बन गयीं निंदिया
बता दे मैं क्या करूं
* खिलते हैं गुल यहां, खिलके बिखरने को
मिलते हैं दिल यहां, मिलके बिछड़ने को
खिलते हैं गुल यहां…
कल रहे ना रहे, मौसम ये प्यार का
कल रुके न रुके, डोला बहार का
चार पल मिले जो आज, प्यार में गुज़ार दे
खिलते हैं गुल यहां…
* रंगीला रे, तेरे रंग में यूं रंगा है मेरा मन
छलिया रे, न बुझे है किसी जल से यह जलन – २
ओ रंगीला रे
पलकों के झूले से सपनों की डोरी
प्यार ने बांधी जो तूने वो तोड़ी
खेल यह कैसा रे, कैसा रे साथी
दिया तो झूमें हैं रोये हैं बाकी
कहीं भी जाये रे, रोये या गाये रे
चैन न पाये रे हिया, वाह रे प्यार वाह रे वाह
रंगीला रे …
* आज मदहोश हुआ जाए रे, मेरा मन मेरा मन मेरा मन
बिना ही बात मुस्कुराए रे, मेरा मन मेरा मन मेरा मन
ओ री कली सजा तू डोली, ओ री लहर पहना तू पायल
ओ री नदी दिखा तू दर्पन, ओ री किरण उड़ा तू आंचल
एक जोगन है बनी आज दुल्हन हो ओ
आओ उड़ जाएं कहीं बनके पवन
आज मदहोश हुआ जाए रे…
* फूलों के रंग से, दिल की कलम से तुझको लिखी रोज पाती
कैसे बताऊं किस-किस तरह से पल-पल मुझे तू सताती
तेरे ही सपने ले कर के सोया, तेरी ही यादो में जागा
तेरे खयालो में उलझा रहा यूं जैसे कि माला में धागा….
* दिल आज शायर है, ग़म आज नग़मा है
शब ये ग़ज़ल है सनम
गैरों के शेरों को ओ सुनने वाले
हो इस तरफ़ भी करम….
* शोखियों में घोला जाये, फूलों का शबाब
उसमें फिर मिलायी जाये, थोड़ी सी शराब
होगा यूं नशा जो तैयार
हां…होगा यूं नशा जो तैयार, वो प्यार है
* कि :
चूड़ी नहीं ये मेरा, दिल है, देखो देखो टूटे ना
चूड़ी नहीं ये मेरा …
कि : नीली पीली, रंग बिरंगी, प्यार की ये सौगात
ना ना ना ना ऐसे नहीं, धीरे धीरे, चुपके चुपके, डालो इनमें हाथ
कांच है कच्चा, लेकिन सच्चा हो इनसे श्रृंगार
पैसा नहीं, सोना नहीं, हीरा नहीं, मोती नहीं कीमत इनकी प्यार
फूलों सी, नाज़ुक है, देखो, देखो देखो देखो देखो, टूटे ना, चूड़ी नहीं ये मेरा …
* स्वप्न झड़े फूल से, मीत चुभे शूल से
लुट गये श्रृंगार सभी, बाग के बबूल से
और हम खड़े खड़े, बहार देखते रहे
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे
इन गीतों के अलावा कवि नीरज को फ़िल्म जगत में सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिए जिन गीतों पर तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार मिला वे हैं-
फिल्म: चन्दा और बिजली 1970:
काल का पहिया घूमे भैया
लाख तरह इन्सान चले
ले के चले बारात कभी तो
कभी बिना सामान चले
राम कृष्ण हरि …
जनक की बेटी अवध की रानी
सीता भटके बन बन में
राह अकेली रात अन्धेरी
मगर रतन हैं दामन में
साथ न जिस के चलता कोई
उस के साथ भगवान चले
राम कृष्ण हरि …
–फिल्म: पहचान 1971:
* बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं,
आदमी हूं आदमी से प्यार करता हूं,
एक खिलौना बन गया दुनिया के मेले में,
कोई खेले भीड़ में कोई अकेले में
मुस्कुरा कर भेंट हर स्वीकार करता हूं
आदमी हूं आदमी से प्यार करता हूं …
फिल्म: मेरा नाम जोकर 1972:
ए भाई! ज़रा देख के चलो, आगे ही नहीं पीछे भी,
दायें ही नहीं बायें भी, ऊपर ही नहीं नीचे भी…
ऐ भाई!
तू जहां आया है वो तेरा- घर नहीं, गांव नहीं
गली नहीं, कूचा नहीं, रस्ता नहीं, बस्ती नहीं
दुनिया है, और प्यारे, दुनिया यह एक सरकस है…
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