नई दिल्लीः चित्रकार, मूर्तिकार, लेखक और वास्तुकार सतीश गुजराल नहीं रहे. 94 साल की उम्र में उनका निधन हो गया. बहुमुखी प्रतिभा के धनी सतीश गुजराल का जन्म 25 दिसंबर, 1925 में ब्रिटिश इंडिया के झेलम में हुआ. अपनी जिंदगी में कठिन संघर्षों के बाद भी सतीश गुजराल ने कभी हार नहीं मानी. उन्होंने कई किताबें भी लिखीं. बचपन में इनका स्वास्थ्य काफ़ी अच्छा था. आठ साल की उम्र में पैर फिसलने के कारण इनकी टांगे टूट गई और सिर में काफी चोट आने के कारण इन्हें कम सुनाई पड़ने लगा. परिणाम स्वरूप लोग सतीश गुजराल को लंगड़ा, बहरा और गूंगा समझने लगे. सतीश चाहकर भी आगे की पढ़ाई नहीं कर पाए. ख़ाली समय बिताने के लिए चित्र बनाने लगे. इनकी भावना प्रधान चित्र देखते ही बनती थी. एक दिन उन्होंने पक्षियों को पेड़ पर सोते हुए देखा. इसके बाद उन्होंने इस छवि की पेंटिंग बनाई, यह उनका चित्रकारी करने की तरफ पहला रुझान था. उन्होंने लाहौर स्थित मेयो स्कूल ऑफ आर्ट में पांच सालों तक उन्होंने विभिन्न विषयों में शिक्षा हासिल की. इस दौरान उन्होंने ग्राफिक डिजायनिंग का भी अध्ययन किया. वर्ष 1944 में वह मुंबई चले गए. जहां उन्होंने जेजे स्कूल ऑफ आर्ट में एडमिशन लिया.
देश के बंटवारे के दौरान उनके परिवार ने विभाजन का दुख झेला, उसकी भयावहता देखी. उनका परिवार शिमला चला आया. बाद में उनके बड़े भाई इंद्र कुमार गुजराल भारत के प्रधानमंत्री भी बने. सतीश गुजराल को तीन बार कला का राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हो चुका है. दो बार चित्रकला के लिए एवं एक बार मूर्तिकला के लिए. भारत सरकार ने उन्हें देश का दूसरा सर्वोच्च पुरस्कार पद्म विभूषण भी प्रदान किया. उन्हें मेक्सिको का 'लियो नार्डो द विंसी' और बेल्जियम के राजा का 'आर्डर आफ क्राउन' पुरस्कार भी मिला. सतीश गुजराल के चित्रों में पशु और पक्षियों को सहज स्थान मिला. इतिहास, लोककथा, पुराण, प्राचीन भारतीय संस्कृति और विविध धर्मों के प्रसंगों को उन्होंने अपने चित्रों में उकेरा, और अपनी कला को अमरता प्रदान की. उन्होंने अपनी आत्मकथा 'अ ब्रश विद लाइफ़' तो लिखी ही, चित्रकला पर 'द वर्ल्ड ऑफ सतीश गुजरालः इन हिज ओन वर्ड्स', 'सतीश गुजरालः स्कल्प्चर्स', 'सतीश गुजरालः सलेक्टेड वर्क्स' जैसी किताबें भी लिखीं. उमा वासुदेव के साथ लिखी 'सतीश गुजरालः ह्वेयर द साइलेंस स्पीक- पेंटिंग्स' को भी काफी सराहना मिली.