नई दिल्लीः अमेज़न जंगल में लगी आग की तस्वीरें इस समय पूरी दुनिया में चर्चित हैं, जो कहीं-न-कहीं पर्यावरण और मानवीय अस्तित्व के लिए एक बड़े खतरे की ओर इशारा करती हैं. इस विश्व में हर व्यवस्था का आधार पर्यावरण है, जो सुनने में सहज लगता है, परन्तु इसकी महत्ता हमारे जीवन में उसी प्रकार है जिस प्रकार, 'दीए में तेल'. इसी पर्यावरण में गंगा, गंगा का पानी केवल मनुष्यों के लिए ही नहीं बल्कि सभी जीव जन्तुओं, खेतों के लिये भी अनिवार्य है, परन्तु क्या हो जब यही पर्यावरण या गंगा प्रदूषित हो जाये, और सकल पारिस्थितिक तंत्र अस्त-व्यस्त हो जाए? इसी समस्या पर अपनी चिन्ता व्यक्त करते हुए, पूरी दुनिया का ध्यान इस ओर लाने के उद्देश्य से 'माटी मानुष चून' को लिखा गया है. विश्व पुस्तक मेला 2020 में वाणी प्रकाशन ग्रुप के स्टॉल पर युवा रचनाकार एवं पर्यावरणविद अभय मिश्रा की इसी पुस्तक 'माटी मानुष चून' का लोकार्पण और परिचर्चा की गयी. इस कार्यक्रम में पर्यावरणविद लेखक एवं पत्रकार सोपान जोशी, स्वतन्त्र पत्रकार अरूण तिवारी और लेखक व पत्रकार पंकज रामेंदु उपस्थित थे. वाणी प्रकाशन ग्रुप की निदेशक अदिति माहेश्वरी-गोयल ने मंच का संचालन करते हुए सभी अतिथियों व श्रोताओं का स्वागत किया.
उपन्यास 'माटी मानुष चून' के रचनाकार अभय मिश्रा से पूछा गया कि इस उपन्यास के पीछे की क्या कहानी है? उन्होंने बताया कि इस उपन्यास की रचना से पहले उन्होंने तीन वर्ष गंगा की यात्रा की, बड़े क़रीब से प्रकृति का विश्लेषण किया. यह उपन्यास ख़तरे की आशंका से उपजा है. अदिति ने प्रश्न किया कि आज जो गंगा की विकट परिस्थिति है, उसके क्या कारण हैं? इस पर उन्होंने बताया कि जहां से मनुष्य नदियों को अपना भगवान मानकर पूजने लगता है, समस्या वहीं से उत्पन्न होती है, क्योंकि इस विचारधारा में वह यही मानता है कि उसे नदियों से केवल लेना ही है, नदियों का प्रबंधन, उनकी चिन्ता का क्षेत्र नहीं. इस चर्चा के केन्द्र में 'गांधी और पर्यावरण' को जोड़ कर सोपान जोशी ने कहा कि गांधी की पुस्तक 'हिन्द स्वराज' में पर्यावरण के ऊपर भी गहन रूप से विचार किया गया है. सोपान जोशी ने इस उपन्यास पर टिप्पणी करते हुए कहा, 'इतिहास नदियों का नहीं, बल्कि मनुष्यों का ही होता है. नदियों का अस्तित्व तो मनुष्यों से भी पहले है. वहीं नदियों पर नये सिरे से सोचने की ज़रूरत है. अदिति माहेश्वरी-गोयल ने उपन्यास की एक पंक्ति 'वेंटिलेटर पर है नदी, का क्या अभिप्राय है? पूछा, तो पत्रकार अरुण तिवारी का जवाब था कि, वेंटिलेटर में जाने की यह हालत, नदियों की नहीं, बल्कि मनुष्यों की है. यदि नदियों के प्रदूषण की यही स्थिति रही तो वर्ष 2075 तक बांग्लादेश का दो तिहाई भाग, और पूर्वी भारत का भाग स्थायी रूप से जलमग्न हो जायेगा.