अमृतसर: “देश का विभाजन एक दुखद घटना थीजिसने सामाजिकराजनीतिकधार्मिक एवं आर्थिक ताने-बाने को बहुत हद तक प्रभावित किया. यह एक धूर्त राजनीतिक चाल थीजिसके आधार पर दोनों पक्षों के कुछ परस्पर स्वार्थी निर्णयों ने एक साजिश को जन्म दिया. इस विभाजन से सबक लेते हुए क्या हम इस बात के प्रति जागरूक हो गए हैं कि भविष्य में इस तरह की घटना न हो.” नौवें अमृतसर साहित्य उत्सव एवं पुस्तक मेले में खालसा कालेज के पंजाबी विभागाध्यक्ष डा आत्म सिंह रंधावा द्वारा आमंत्रित किए जाने पर पंजाबी विचारक एवं आलोचक डा रवि रविंद्र ने यह बात कही. उन्होंने ‘प्रेम एवं देशभक्ति‘ विषय पर कविताएं एवं साहित्यिक रचनाएं उद्धृत कीं. भारत के विभाजन की तुलना प्रलय से करते हुए उन्होंने कहा कि वर्षों बीत जाने के बावजूद इस घटना को कभी वैश्विक परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत नहीं किया गया. इस पीड़ा को व्यक्त करने वाले विभिन्न लेखकों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि विभाजन के बाद पैदा हुए लोगजिन्होंने त्रासदी झेलीआज भी भावनात्मक स्तर पर इस घटना से जुड़े हुए हैं. उन्होंने कहा कि देश के विभाजन के संदर्भ में आपसी प्रेम एवं मेलजोल पर साहित्य की कमी है. त्रासदी से संबंधित साहित्य ज्यादातर हिंदीउर्दू और बंगाली में लिखा और पढ़ा गया. विभाजन से जुड़े विभिन्न प्रभावित पक्षों जैसे विकलांगगरीबदलितों का क्या हुआयह विचारणीय मुद्दा है.

प्रसिद्ध नाटककार और निर्देशक केवल धालीवाल ने अपने द्वारा निर्देशित नाटक ‘यात्रा 1947′ के संदर्भ में बोलते हुए कहा कि यह मानवीय स्तर पर विभाजन की पीड़ा का प्रतिनिधित्व करता है. उन्होंने कहा, “ऐसी भावनाएं हर पीढ़ी के जीवन का अभिन्न अंग रही हैं. देश के विभाजन का मुद्दा केवल भौतिक विभाजन तक सीमित नहीं हैबल्कि भावनात्मक जुड़ाव से भी जुड़ा है. यही कारण है कि हम इस घटना का बार-बार जिक्र करते हैं. उन्होंने कहा कि विचारणीय प्रश्न यह है कि क्या हमने विभाजन की त्रासदी से कोई सबक सीखा है या नहींक्या हम शासक वर्ग की चालों को समझ पाए हैं या नहींजरूरत है कि हम समझदार बनें ताकि हमें ऐसी घटना का फिर से सामना न करना पड़े. साहित्य को दर्दसंवेदना और चेतना के बिना पढ़ा या समझा नहीं जा सकता. विभाजन के कारणों और प्रभावों को समझने के लिए ऐसी घटनाएं महत्वपूर्ण हैं. मुख्य अतिथि परमिंदर सोढ़ी ने कहा कि मानवता ही मनुष्य का विशेष धर्म है. मानव व्यवहार का मूल मंत्र समानता है. यदि लोग आपसी धार्मिक कट्टरता को नकारें नहीं तो ऐसी स्थिति दोबारा पैदा होने की संभावना हो सकती है. डा कुलदीप सिंह दीप ने रंगमंच के संदर्भ में बोलते हुए कहा कि आजादी हमारी मुक्ति हैजब यह हमें अपने साथ हुई घटनाओं का दर्द महसूस कराती है. इसकी प्रस्तुति रंगमंच और फिल्मों के माध्यम से की जा रही है. विभाजन से जुड़ा साहित्य हमारे मन को झकझोर देता है. साहित्य हमें हमारी विरासत से जोड़कर जागरूकता पैदा करता है. पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला के रंगमंच एवं फिल्म निर्माण विभाग और युवा कल्याण एवं सांस्कृतिक गतिविधियां विभाग की ओर से ओपन एयर थियेटर में नाटककार बादल सरकार का नाटक ‘एवं इंद्रजीत‘ प्रस्तुत किया गया.