नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जब भी अवसर प्राप्त होता है, वे विरासत, संस्कृति और भाषा की बात करना नहीं भूलते. मन की बात कार्यक्रम के दस साल पूरे हुए, तो इसकी 114वीं कड़ी में उन्होंने भाषा से जुड़े बिंदु को भी छुआ. उन्होंने कहा, “अगर मैं पूछूं कि कोई बच्चा कौन सी भाषा सबसे आसानी से और जल्दी सीखता है- तो आपका जवाब होगा ‘मातृ भाषा‘. हमारे देश में लगभग बीस हजार भाषाएं और बोलियां हैं और ये सब की सब किसी-न-किसी की तो मातृ-भाषा है ही हैं. कुछ भाषाएं ऐसी हैं जिनका उपयोग करने वालों की संख्या बहुत कम है, लेकिन आपको यह जानकर खुशी होगी, कि उन भाषाओं को संरक्षित करने के लिए आज अनोखे प्रयास हो रहे हैं. ऐसी ही एक भाषा है हमारी ‘संथाली‘ भाषा. ‘संथाली‘ को डिजिटल इनोवेशन की मदद से नई पहचान देने का अभियान शुरू किया गया है. ‘संथाली‘, हमारे देश के कई राज्यों में रह रहे संथाल जनजातीय समुदाय के लोग बोलते हैं. भारत के अलावा बांग्लादेश, नेपाल और भूटान में भी संथाली बोलने वाले आदिवासी समुदाय मौजूद हैं. संथाली भाषा की आनलाइन पहचान तैयार करने के लिए ओड़िशा के मयूरभंज में रहने वाले रामजीत टुडु एक अभियान चला रहे हैं. रामजीत ने एक ऐसा डिजिटल मंच तैयार किया है, जहां संथाली भाषा से जुड़े साहित्य को पढ़ा जा सकता है और संथाली भाषा में लिखा जा सकता है. दरअसल कुछ साल पहले जब रामजीत ने मोबाइल फोन का इस्तेमाल शुरू किया तो वो इस बात से दुखी हुए कि वो अपनी मातृभाषा में संदेश नहीं दे सकते! इसके बाद वो ‘संथाली भाषा‘ की लिपि ‘ओल चिकी‘ को टाइप करने की संभावनाएं तलाश करने लगे. अपने कुछ साथियों की मदद से उन्होंने ‘ओल चिकी‘ में टाइप करने की तकनीक विकसित कर ली. आज उनके प्रयासों से ‘संथाली‘ भाषा में लिखे लेख लाखों लोगों तक पहुंच रहे हैं.
प्रधानमंत्री ने कहा कि हम सभी को अपनी विरासत पर बहुत गर्व है. और मैं तो हमेशा कहता हूं ‘विकास भी-विरासत भी‘. यही वजह है कि मुझे हाल की अपनी अमेरिका यात्रा के एक खास पहलू को लेकर बहुत सारे संदेश मिल रहे हैं. एक बार फिर हमारी प्राचीन कलाकृतियों की वापसी को लेकर बहुत चर्चा हो रही है. मैं इसे लेकर आप सबकी भावनाओं को समझ सकता हूं और ‘मन की बात‘ के श्रोताओं को भी इस बारे में बताना चाहता हूं. प्रधानमंत्री ने कहा कि अमेरिका की मेरी यात्रा के दौरान अमेरिकी सरकार ने भारत को करीब 300 प्राचीन कलाकृतियों को वापस लौटाया है. अमेरिका के राष्ट्रपति बाइडेन ने पूरा अपनापन दिखाते हुए डेलावेयर के अपने निजी आवास में इनमें से कुछ कलाकृतियों को मुझे दिखाया. लौटाई गईं कलाकृतियां टैराकोटा, पत्थर, हाथी दांत, लकड़ी, तांबा और कांसे जैसी चीजों से बनी हुई हैं. इनमें से कई तो चार हजार साल पुरानी हैं. चार हजार साल पुरानी कलाकृतियों से लेकर 19वीं सदी तक की कलाकृतियों को अमेरिका ने वापस किया है – इनमें फूलदान, देवी-देवताओं की टेराकोटा पट्टिकाएं, जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाओं के अलावा भगवान बुद्ध और भगवान कृष्ण की मूर्तियां भी शामिल हैं. लौटाई गईं चीजों में पशुओं की कई आकृतियां भी हैं. पुरुष और महिलाओं की आकृतियों वाली जम्मू-कश्मीर की टेराकोटा टाइल्स तो बेहद ही दिलचस्प हैं. इनमें कांसे से बनी भगवान गणेश की प्रतिमाएं भी हैं, जो दक्षिण भारत की हैं. वापस की गई चीजों में बड़ी संख्या में भगवान विष्णु की तस्वीरें भी हैं. ये मुख्य रूप से उत्तर और दक्षिण भारत से जुड़ी हैं. इन कलाकृतियों को देखकर पता चलता है कि हमारे पूर्वज बारीकियों का कितना ध्यान रखते थे. कला को लेकर उनमें गजब की सूझ-बूझ थी. इनमें से बहुत सी कलाकृतियों को तस्करी और दूसरे अवैध तरीकों से देश के बाहर ले जाया गया था – यह गंभीर अपराध है, एक तरह से यह अपनी विरासत को खत्म करने जैसा है, लेकिन मुझे इस बात की बहुत खुशी है, कि पिछले एक दशक में, ऐसी कई कलाकृतियां, और हमारी बहुत सारी प्राचीन धरोहरों की, घर वापसी हुई है. इस दिशा में आज भारत कई देशों के साथ मिलकर काम भी कर रहा है.