गजाधर द्विवेदी l जागरण गोरखपुर : योगिराज बाबा गंभीरनाथ प्रेक्षागृह में आयोजित ‘दैनिक जागरण संवादी’ में शनिवार को तीसरा सत्र सिंधी साहित्य के नाम रहा। विषय था- ‘हाशिए पर सिंधी साहित्य’। लेकिन, जब बातचीत शुरू हुई तो समाज, विभाजन की विभीषिकाएं और सिंध से विस्थापित लोगों के संघर्ष भी प्रमुखता से उभरे। विभाजन के बाद गोरखपुर आए सिंधी समाज के लोगों के संघर्ष से लेकर प्रगति और समाज निर्माण में उनके योगदान की चर्चा भी हुई। सिंधी साहित्य के हाशिए पर जाने के कारणों व समाधान पर चर्चा होने के साथ ही वक्ताओं ने यह भी कहा कि विभाजन के बाद दाना-दाना होकर पूरे भारत में बिखर गए सिंधी समाज का सुखद पक्ष यह है कि सिंधी पूरे भारत में फैलकर असीम हो गई। आज सिंधी भाषा के लिए एक बड़ा फलक तैयार हो गया है। जरूरत है कि हम उसे जीवन में उतारें। इसके विकास में राष्ट्रीय शिक्षा नीति भी सहयोगी हो रही है। वक्ता के रूप में राष्ट्रीय सिंधी विकास परिषद, नई दिल्ली के निदेशक प्रो.रविप्रकाश टेकचंदाणी व युवा सिंधी समाज, गोरखपुर के उपाध्यक्ष नरेश कर्मचंदानी रहे। माडरेटर की भूमिका प्रगति सिंधी क्लब, गोरखपुर की संस्थापक अध्यक्ष कविता नेभानी ने निभाई। कविता के सवाल राष्ट्रीय सिंधी विकास परिषद के गठन से लेकर विभाजन की विभीषिका और हाशिए पर जा चुके सिंधी साहित्य से जुड़े रहे। वक्ताओं ने एक-एक कर सभी प्रश्नों के जवाब दिए और सिंधी साहित्य को पुनर्प्रतिष्ठित करने के उपाय भी सुझाए। प्रो.रविप्रकाश टेकचंदाणी ने कहा कि सिंधी मां है तो हिंदी हमारी मौसी है। मां अपने बच्चे का सही से पालन करेगी तो मौसी भी सहयोग करेगी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के कारण आने वाले 10-12 वर्षों बाद जब सिंधी में पढ़ने वालों को नौकरी मिलने लगेगी तो आपके ही बच्चे आपसे पूछेंगे कि आपने हमें सिंधी क्यों नहीं पढ़ाई। सिंधी लोग भी अन्य भाषाओं में लेखन कर रहे हैं, उन्हें सिंधी भाषा में लेखन के लिए प्रोत्साहित व प्रेरित करने की जरूरत है। नरेश कर्मचंदानी ने शहर में सिंधी समाज के आगमन, संघर्ष व विकास की रूपरेखा प्रस्तुत की। संचालन प्रकृति त्रिपाठी ने किया।