नई दिल्ली: कला, संस्कृति, साहित्य और भाषा को लेकर बच्चों और युवाओं में अभिरुचि जगाने की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कोशिश इस बार भी मन की बात की 115वीं कड़ी में जारी रही. बच्चों से मुखातिब प्रधानमंत्री ने सरदार पटेल और भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जन्मजयंती की याद दिलाई और नई पीढ़ी को उससे प्रेरणा लेने की सीख दी. प्रधानमंत्री ने महात्मा गांधी की 150वीं जन्म जयंती की भी याद की, जो न्यूयार्क के टाइम्स स्क्वायर से दक्षिण अफ्रीका के छोटे से गांव तक मनाया गया. उन्होंने कहा कि विश्व के लोगों ने भारत के सत्य और अहिंसा के संदेश को समझा, उसे फिर से जाना, उसे जिया. नौजवानों से बुजुर्गों तक, भारतीयों से विदेशियों तक, हर किसी ने गांधी जी के उपदेशों को नए संदर्भ में समझा, नई वैश्विक परिस्थितियों में उन्हें जाना. प्रधानमंत्री ने स्वामी विवेकानंद की 150वीं जन्म जयंती की याद दिलाते हुए कहा कि इससे देश के नौजवानों ने भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक शक्ति को नई परिभाषाओं में समझा. इन योजनाओं ने हमें ये एहसास दिलाया कि हमारे महापुरुष अतीत में खो नहीं जाते, बल्कि, उनका जीवन हमारे वर्तमान को भविष्य का रास्ता दिखाता है. प्रधानमंत्री ने ‘छोटा भीम‘, ‘ढोलकपुर का ढोल‘ और एनिमेटेड सीरीज ‘कृष्णा‘, ‘हनुमान‘, ‘मोटू-पतलू‘ का जिक्र करते हुए कहा कि भारत की यह सृजनात्मकता देश ही नहीं बल्कि दूसरे देश के बच्चों को भी खूब लुभा रही है. स्वामी विवेकानंद का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा था कि स्वामी जी ने एक बार सफलता का मंत्र दिया था, उनका मंत्र था- ‘कोई एक आइडिया लीजिए, उस एक आइडिया को अपनी जिंदगी बनाइए, उसे सोचिए, उसका सपना देखिए, उसे जीना शुरू करिए. आज, आत्मनिर्भर भारत अभियान भी सफलता के इसी मंत्र पर चल रहा है. ये अभियान हमारी सामूहिक चेतना का हिस्सा बन गया है. लगातार, पग-पग पर हमारी प्रेरणा बन गया है. आत्मनिर्भरता हमारी नीति ही नहीं, हमारा जुनून बन गया है.
प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे बहुत सारे स्कूली बच्चे कैलीग्राफी यानी सुलेख में काफी दिलचस्पी रखते हैं. इसके जरिए हमारी लिखावट साफ, सुंदर और आकर्षक बनी रहती है. आज जम्मू-कश्मीर में इसका उपयोग स्थानीय संस्कृति को लोकप्रिय बनाने के लिए किया जा रहा है. यहां के अनंतनाग की फिरदौसा बशीर को कैलीग्राफी में महारत हासिल है, इसके जरिए वे स्थानीय संस्कृति के कई पहलुओं को सामने ला रही हैं. फ़िरदौसा जी की कैलीग्राफी ने स्थानीय लोगों, विशेषकर युवाओं को, अपनी ओर आकर्षित किया है. ऐसा ही एक प्रयास उधमपुर के गोरीनाथ जी भी कर रहे हैं. एक सदी से भी अधिक पुरानी सारंगी के जरिए वे डोगरा संस्कृति और विरासत के विभिन्न रूपों को सहेजने में जुटे हैं. सारंगी की धुनों के साथ वे अपनी संस्कृति से जुड़ी प्राचीन कहानियां और ऐतिहासिक घटनाओं को दिलचस्प तरीके से बताते हैं. देश के अलग-अलग हिस्सों में भी आपको ऐसे कई असाधारण लोग मिल जाएंगे जो सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिए आगे आए हैं. डी. वैयकुन्ठम करीब 50 साल से चेरियाल फोक आर्ट को लोकप्रिय बनाने में जुटे हुए हैं. तेलंगाना से जुड़ी इस कला को आगे बढ़ाने का उनका यह प्रयास अद्भुत है. प्रधानमंत्री ने कहा कि चेरियाल पेंटिंग्स को तैयार करने की प्रक्रिया बहुत ही अनूठी है. ये एक स्क्रोल के स्वरूप में कहानियों को सामने लाती है. इसमें हमारे इतिहास और पुराण की पूरी झलक मिलती है. छत्तीसगढ़ के नारायणपुर के बुटलूराम माथरा का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि वे अबूझमाड़िया जनजाति की लोक कला को संरक्षित करने में जुटे हुए हैं. पिछले चार दशकों से वे अपने इस अभियान में लगे हुए हैं. उनकी ये कला ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ‘ और ‘स्वच्छ भारत‘ जैसे अभियान से लोगों को जोड़ने में भी बहुत कारगर रही है. प्रधानमंत्री ने दुनिया भर में कालिदास की ‘अभिज्ञान शाकुंतलम‘, ‘फलक फलम‘, ‘लाओस की रामायण‘, अब्दुल्ला अल-बारुन के रामायण और महाभारत के अरबी में अनुवाद का भी जिक्र किया