नई दिल्लीः यूनेस्को के क्लस्टर कार्यालय के निदेशक एरिक फाल्ट का कहना है कि यह हम सभी के लिए जागृत होने का समय है, क्योंकि दुनियाभर में करीब दो हफ्ते में एक भाषा समाप्त हो जाती है. उन्होंने कहा कि शिक्षा प्रणाली में केवल कुछ सौ भाषाओं को ही स्थान दिया गया है और पब्लिक डोमेन में आज डिजिटल दुनिया में 100 से भी कम भाषाओं का उपयोग किया जाता है. किसी भाषा का नुकसान अपूरणीय होता है और इसीलिए अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने का विचार आया. दुनियाभर में हमें भाषा के विकास, प्रौद्योगिकी और स्थानीय भाषाओं के लिए डिजिटल संसाधन पर समान रूप से जोर देना चाहिए, जिससे स्थानीय समुदायों को सशक्त किया जा सके. उन्होंने प्रौद्योगिकियों और नवाचारों पर ध्यान देने पर जोर दिया जिससे हम कुछ उन बड़ी चुनौतियों, विशेष रूप से शिक्षा में का समाधान कर सकें, जिनका हम आज सामना कर रहे हैं. वे आजादी का अमृत महोत्सव के तत्वावधान में भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र और यूनेस्को नई दिल्ली के क्लस्टर कार्यालय के सहयोग से आयोजित कार्यक्रम में बोल रहे थे.
इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद प्रसिद्ध कवि, गीतकार और लेखक प्रसून जोशी ने अपने ज्ञानवर्धक अनुभवों और अपनी कुछ कविताओं के पाठ से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर लिया. कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि मातृभाषा को आगे ले जाने के लिए युवा पीढ़ी की भागीदारी जरूरी है. हमें अपनी मातृभाषा पर गर्व का अनुभव होना चाहिए और इसका भरपूर उपयोग करना चाहिए अन्यथा हम इसे खो सकते हैं. हम दूसरी भाषाओं को सीखना जारी रख सकते हैं, जो एक कौशल प्राप्त करने जैसा है, लेकिन यह मातृभाषा ही होती है जो हमारे सांस्कृतिक लोकाचार से भावनात्मक लगाव पैदा करती है. इस अवसर पर आईजीएनसीए के डीन प्रोफेसर रमेश सी. गौर द्वारा लिखित 'भारत की जनजातीय और देशज भाषाएं' पुस्तक का विमोचन किया गया. संस्कृति सचिव गोविंद मोहन, संयुक्त सचिव उमा नंदूरी और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य सचिव डॉ सच्चिदानंद जोशी सहित अन्य अधिकारी इस अवसर पर उपस्थित थे.